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"एकला चलो" !

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भीड़ सदा ही आपको फायदा पहुंचाए ऐसा जरुरी नहीं,  भीड़ का हिस्सा बनने से बचें.... , आपकी अपनी एक पहचान हो, आपका अपना एक रास्ता हो, आपका अपना एक सफर हो, आप सिर्फ और सिर्फ आप हों ,   आप आम नहीं आप ख़ास हों,  आप भीड़ से नहीं.....भीड़ आप से हो, जिंदगी में हमेशा एक बात का ध्यान रखना आपकी काबिलियत किसी भीड़ का टुकड़ा बन कर न रह जाए, आपकी  क़ाबलियत आपकी पहचान हो आपकी  ताकत हो, जिसका सब इस्तेमाल करना चाहें, जिससे सब जुड़ना चाहें.......बैसाखियों के सहारे चलने वाले हमेशा बैसाखियों के मोहताज होते हैं उनका एक कदम भी अपना नहीं होता और सदा मंजिल से पहले उनकी बैसाखियाँ उनको धोखा  दे देती हैं..... इसलिए बिना बैसाखियों के बिना सहारे के "एकला चलो"! अपने हुनर, अपनी क्षमताओं को कभी भी कम मत आंको, तुम्हारा व्यक्तित्व तुमसे बड़ा हो.....भीड़ से बड़ा हो , और उस व्यक्तित्व का सभी से सम्मान मिले-मान मिले ! आपकी काबिलियत किसी बैसाखियों की मोहताज न हो...., बैसाखियों की जरुरत कमजोरों को होती है-आपको नहीं  !