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Showing posts from August, 2019

जीवन को जीने के सिर्फ दो ही तरीके हैं- या तो कहो उसको 'ओके' या तो जी लो उसको 'रो के' !

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अगर आप हँस कर कठिनाइयों को, परिस्थितियों को स्वीकार नहीं भी करेंगें तो भी वह बदलने वाली नहीं हैं I बस फर्क इतना पडेगा की आप अपने जीवन में हमेशा एक वजन को लेकर चलते रहेंगें, इससे बेहतर यह है की उन कठिनाइयों को ओके कहें-स्वीकार करें, वह जैसी भी हैं उनका प्रतिरोध न करें, उनका मुकाबला करें और उन्हें समय दें ताकि वह अपने आप आपके जीवन से निकल जाएँ न की रोके उनको अपने जीवन का सदा के लिए हिस्सा बना लें या बनने दें, रोने से कुछ हासिल नहीं होगा परिस्थितियां बदलने वाली नहीं है इसलिए खुद बदल जाएँ और हँस कर उनका मुकाबला करें I जीने के बस दो ही तरीके है: मुश्किलों को कह दो ‘ओके’ या फिर उलझे रहो उनमें ‘रो-रोके’ I चोइस आपकी है क्योंकि जिंदगी भी आपकी है I चुनना आपको है क्योंकि अपना जीवन बुनना आपको है I

कृष्ण उपदेश....गीता सार !

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जब  महाभारत का युद्ध चरम पर था और अर्जुन पेशोपेश में थे, तो  कृष्ण ने उन्हें रणभूमि में ही गीता का उपदेश दिया  उन्होंने अर्जुन को जो ज्ञान दिया वह आज की परिस्थितियों में भी सार्थक है और आने वाले कल में भी उसकी सार्थकता निश्चित है....और  वही व्यक्ति सफल है जिसने  अपने जीवन में ' गीता' को सही मायनों में 'जीता' है !                                                                       * गीता सार * • क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है। • जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है। • तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया। • खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी क

पहले एक्टिंग करिए , मेहनत करिए.....आप सुपर स्टार अपने आप बन जायेंगें !

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‘मैं पहले सुपर-स्टार बनूंगा फिर अपनी एक्टिंग, अपने करियर की शुरुआत करूँगा’.....  इस वक्तव्य में जिस चीज की कमीं झलक रही है वह है 'काम' से पहले 'नाम' की अपेक्षा I   हम और आप में से ज्यादातर लोग सिर्फ नाम की तलाश में अपनी सारी एनर्जी लगा रहें हैं, हमारा सारा प्रयास इसी में होता है कि किस तरह हम ‘बिना काम...चारों तरफ नाम’ कर सकें I   आज ऊपर दिये गए वक्तव्य को देने वाला कलाकार गुमनामी के अन्धेरों में है और  अपने जीवन में अब तक कुछ भी हासिल नहीं कर पा रहा I उसके पास नाम तो दूर आज कोई काम भी नहीं है I अगर उसनें उस समय यह कहा 'मैं पहले एक्टिंग करूँगा और पूरी मेहनत और लगन से अपना काम करूंगा और फिर एक दिन बहुत बड़ा सुपर-स्टार बनूँगा' उसने पहले अपनी एक्टिंग अपने काम, अपनी मेहनत को अपना हथियार बनाया होता तो आज परिस्थितियाँ ऊपर से बिल्कुल विपरीत होतीं और आज वह एक सुपर-स्टार होता न कि गुमनामी के अँधेरे में I क्यों, हम वह सब वह पाना चाहते है पर जिनके लिए हम प्रयास नहीं करना चाहते हम अपनी थाली पूरी तरह सजी हुई, हम अपने लिए मंच तैयार देखना चाहते हैं ताकि हम उस प

अपने होने का कभी ‘अभिमान’ मत करना !

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अपने होने का कभी ‘अभिमान’ मत करना, कभी भी नहीं I जिस दिन यह अभिमान तुम्हारे अंदर आ गया उस दिन से जो ऊँचाइयाँ तुमने देखी हैं तुम्हारा सफर उससे नीचे की तरफ को शुरू हो जाएगा I तुम आज हो कल नहीं होगे यह तय है, वक्त की सुईयां जब सिकंदर से नहीं रुकी तो तुम्हारी क्या हस्त है   और जिस दिन तुम्हें अपने होने का अभिमान हो उस दिन बाहर निकल कर सूरज को देख लेना जो शाम होते-होते ढल जायगा, जितना चाहे चाह कर भी रात में नहीं कभी नहीं निकल सकता, चाहे वह जितना भी ताकतवर क्यों न हो I चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा  ढल जायेगा ढल जायेगा  खाली हाथ आया है खाली हाथ जायेगा जानकर भी अन्जाना बन रहा है दीवाने आज तक ये देखा है पानेवाले खोता है ज़िन्दगी को जो समझा ज़िन्दगी पे रोता है मौत ने ज़माने को ये समा दिखा डाला कैसे कैसे रुस्तम को खाक में मिला डाला याद रख सिकन्दर के हौसले तो आली थे जब गया था दुनिया से दोनो हाथ खाली थे अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं जंग जो न पोरस है और न उसके हाथी हैं चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा  ढल जायेगा ढल जायेगा  ‘अभी-मान’ या ‘अभी-न मान’ यह तुम्हें तय

बड़ी-बड़ी शेखी मारने वाले लोग, ढोल की तरह ही अंदर से खोखले होते हैं ।

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एक बार एक जंगल के निकट दो राजाओं के बीच घोर युद्ध हुआ। एक जीता दूसरा हारा। सेनाएं अपने नगरों को लौट गईं। बस , सेना का एक ढोल पीछे रह गया। उस ढोल को बजा-बजाकर सेना के साथ गए भाट व चारण रात को वीरता की कहानियां सुनाते थे। युद्ध के बाद एक दिन आंधी आई। आंधी के जोर में वह ढोल लुढ़कता-पुढ़कता एक सूखे पेड़ के पास जाकर टिक गया। उस पेड़ की सूखी टहनियां ढोल से इस तरह से सट गई थीं कि तेज हवा चलते ही ढोल पर टकरा जाती थीं और  ढमाढम - ढमाढम  की गुंजायमान आवाज होती। एक  सियार  उस क्षेत्र में घूमता था। उसने ढोल की आवाज सुनी। वह बड़ा भयभीत हुआ। ऐसी अजीब आवाज बोलते पहले उसने किसी जानवर को नहीं सुना था। वह सोचने लगा कि यह कैसा जानवर है , जो ऐसी जोरदार बोली बोलता है ' ढमाढम ' । सियार छिपकर ढोल को देखता रहता , यह जानने के लिए कि यह जीव उड़ने वाला है या चार टांगों पर दौड़ने वाला। एक दिन सियार झाड़ी के पीछे छुपकर ढोल पर नजर रखे था। तभी पेड़ से नीचे उतरती हुई एक गिलहरी कूदकर ढोल पर उतरी। हलकी-सी ढम की आवाज भी हुई। गिलहरी ढोल पर बैठी दाना कुतरती रही। सियार बड़बड़ाया , &

दूसरे की हार में, अपनी जीत देखने वालों को कभी भी जीत नसीब नहीं होती ...!

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हल्की-हल्की बारिश हो रही थी और बारिश का पानी जमीन पर था, इससे पहले की पानी और बड़े नीचे खड़ी एक छोटी चींटी ने उससे बचने के लिए पास की दीवार पर चढ़ने की सोची, लेकिन चींटी बार-बार दीवार पर चढ़ने का प्रयास करती पर कुछ ऊपर जाती की वापिस नीचे जमीन पर गिर जाती, एक चींटा नीचे खडा हो कर यह सब देख रहा था चींटीं को बार गिरते देख खुश हो रहा था, की इसके बस का काम नहीं है अब यह नहीं बचेगी, उसकी हार में, उसके गिरने में उसको आनन्द आ रहा था वह उसके प्रयासों का मजाक बना रहा था,  अब बारिश और  भी तेज हो चुकी थी, जमीन पर  पानी का बहाव भी धीरे-धीरे बढने लगा था  चींटीं ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और अपनी सारी शक्ति के फिर दीवार पर चड़ने का प्रयास किया,  चींटी का अपने पर विश्वास और उसकी हिम्मत व मेहनत रंग लाई, उसका बिना रुके निरंतर किया गया प्रयास आखिर सफल हुआ और वह कुछ ही देर में दीवार की मुंडेर पर थी, सिर्फ इसलिए क्योंकि उसने हार नहीं मानी और अपना प्रयास निरंतर जारी रखा इस बात से बेखबर और बिना विचलित हुए की नीचे बेठा चींटा उसके बारे में क्या कह रहा है, क्या सोच रहा है ! तेज बारिश में अचानक बारिश के पा

‘Husband’ और ‘Wife’ की जोड़ी अगर एक ‘Broadband’ और दूसरा ‘Wi-Fi’ की तरह काम करे तो अपना घर-परिवार बहुत अच्छी तरह से चला सकतें हैं !

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‘घर’ एक ‘मंदिर’ कि तरह होता है लेकिन तभी , जब आप घर के हर सदस्य की भगवान कि तरह पूजा करतें हैं, उनका बखूभी ख्याल रखतें हैं, चाहे वो घर के बड़े-बुजुर्ग हों या फिर बच्चे हों सबको साथ लेकर चलने कि कला अगर आप में है तो आपका ‘घर’ वाकई में एक ‘मंदिर’ है अन्यथा नहीं ! घर को मंदिर बनाने के दो अहम किरदार हैं - पति और पत्नी, यानि ‘ हसबैंड ’ और ‘वाइफ’ जी हाँ, ‘Husband’ और ‘Wife’ की यह जोड़ी अगर एक ‘ Broadband ’ और दूसरा ‘ Wi-Fi ’ की तरह काम करे तो अपना घर-परिवार, अपना और अपनों का जीवन बहुत अच्छी तरह से चला सकतें हैं ! ‘ Broadband ’ क्या है, जी हाँ Broadband का मतलब है की एक उच्च क्षमता की तकनीक जो की अलग-अलग फ्रीक्वेन्सी का इस्तेमाल कर एक समय में ज्यादा से ज्यादा सिग्नल या मेसेज एक साथ ट्रांसफर कर सके, Husband का भी घर में, परिवार में यही रोल होना चाहिए एक broadband की तरह वह भी पूर्ण सक्षम होना चाहिए, उसमें भी उच्च क्षमता होनी चाहिए की घर के अलग अलग विचारधारा, अलग-अलग frequency के लोगों को एक साथ ले कर , उनमें  तालमेल बनाकर चले और उनमें आपसी सामंजस्ये बनाए रखे, घर व परिवार

आपका जीवन, आपकी जिंदगी एक ‘छाते’ कि तरह होनी चाहिए....!

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एक बुजुर्ग बता रहे थे, कि जो जिंदगी है वो एक छाते कि तरह होनी चाहिए, रहा न गया हमने पूछ ही लिया ‘कि जिंदगी और छाते का क्या  सामंजस्य  है, जिंदगी अपनी जगह और छाता अपनी जगह है’, बुजुर्ग ने कहा ‘नहीं सामंजस्य है दोनों में बहुत समानता है, एक घर के बड़े-बुजुर्ग कि छत्र-छाया ओर सुरक्षा दोनों हाथ खोल कर जिस तरह परिवार को हरदम चाहिए रहती है, छाता भी ठीक उसी तरह अपने को खोल कर हमें बारिश और धूप से बचाता है बाहरी विपदाओं से हमारी रक्षा करता है, ऐसी ही हमारी जिंदगी ओर जीवन होना चाहिए कि हम अपने परिवार कि विपदाओं, मुश्किलों और कठिनाइयों से उनकी रक्षा कर सकें, ताकि मुसीबत के कोई भी छींटे उनको नुक्सान न पहुंचा सके और एक मजबूती के साथ हम हरदम उनके साथ खड़े हों  एक छाते के सामान खुल कर उनको बारिश ओर धूप  रूपी कठिनाइयों से बचाने के लिए.... और, जब कठिनाइयों का दौर थम जाए और जब जरुरत हो कहीं भी adjust होने कि तो हम अपने आप को समेट लें, अपनी महतव्कंशाओं-अपनी इच्छाओं को परिवार पर हावी न होने दें, परिवार के हर व्यक्ति को सम्मान दें और खुली छूट दें कि वह खुल कर जी पाए हरदम - हर सफ़र पर उसको आपके सा

किसी भी मकसद को पाने के लिए - आँखें खुली और दिमाग शांत होना चाहिए !

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कौआ मटके में बहुत देर से कंकर डाल रहा था, लेकिन पानी था की ऊपर आने का नाम ही नहीं ले रहा था, थक कर कौए ने बड़े-बड़े पत्थर मटके में डालने शुरू किये लेकिन पानी अब भी नहीं ऊपर आया कुछ देर बाद क्या हुआ पानी तो ऊपर नहीं आया लेकिन मटका कंकर और पत्थरों से भर गया, लेकिन पानी ऊपर क्यों नहीं आया कौए सोचने लगा कि उसने तो पूरी मेहनत की लेकिन फल क्या मिला कंकर-पत्थर ,आखिर उसको उचित फल क्यों नहीं मिला पानी के लिए किया गया प्रयास कंकर में कैसे तब्दील हो गया,  लेकिन  क्या मटके में पानी था जिसको ऊपर लाने के लिए कौए ने इतना प्रयास किया, क्या कौए ने मटके में झांक कर देखा था की इसमें पानी है भी या नहीं या फिर बिना किसी मकसद के प्रयास शुरू कर दिया, हर बार जरुरी नहीं है की कहानी बार-बार एक सी ही दोहराई जाए ! जी हाँ, मटके में छेद था और उसमें जो पानी था वह रिस कर बाहर निकल चूका था और अब उसमें पानी था ही नहीं, मटका पूरी तरह से खाली था  बिन पानी के जिस पानी को ऊपर लाने का प्रयास कौए द्वारा किया जा रहा था.......बिलकुल , हममें से भी ज्यादातर लोग उस पानी को पाने का प्रयास कर रहे जो की मृग-मरीचिका मात्र भर

"जहां लोगों की 'सोच' ख़त्म हो, वहाँ से आपकी 'सोच' शुरू होनी चाहिए "

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पिताजी पूरा जोर लगा कर पिछले पांच घंटे से अपने बंद संदूक को खोलने की कोशिश कर रहे थे, संदूक पर जो ताला जड़ा हुआ था उसकी चाबी कहीं गुम हो गई थी और नहीं मिल रही थी, पिताजी जोड़-तोड़ से ताला खोलने की कोशिश कर रहे थे, पास ही दस साल का  बेटा बहुत देर से खड़ा यह सब देख रहा था , अपने पिता की मुश्किल और  मशक्कत देख वह परेशान था उससे रहा नहीं गया हिम्मत कर पिताजी के पास जाता और मदद के लिए कहता पर पिता हर बार उस पर खसिया कर नाराज़ हो उसे वहां से चले जाने को कहता-"जाओ अपनी पढ़ाई करो यह सब तुम्हारे बस का काम नहीं है, बार-बार मुझे परेशान मत करो" और वह फिर जोड़-तोड़ में लग जाता की बिना चाबी का ताला कैसे खुलेगा, जब वह पसीनों-पसीने हो गया तो थक कर बैठ गया अब बेटे से रहा न गया उसने बड़ी हिम्मत जुटाई और पिता से पूछ ही लिया "पिताजी क्या आपको ताला खोलना है या फिर संदूक ,बस एक बार बता दो", पिता ने बेटे की तरफ गुस्से से देखा और कहा "क्या फर्क है दोनों में" बेटा कुछ न बोला और सिर्फ एक  पेचकस (Screwdriver) उठाया और संदूक के पीछे लगे कब्जे के स्क्रू (Screw) चंद मिनटों में खोल दिए और

आप अपने काम ईमानदारी से करते हैं तो किसी से डरने की जरुरत नहीं है !

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आप अपने काम ईमानदारी से करते हैं तो किसी से डरने की जरुरत नहीं है और अगर नहीं करते तो काम ईमानदारी से करना शुरू कर दीजिए क्योंकि आपको मौका एक बार मिलेगा, दो बार मिलेगा लेकिन बार-बार नहीं मिलेगा,  अपने काम के प्रति ईमानदार बनिए काम को बोलने दें बजाए शब्दों के ! काम हमेशा संयम, शालीनता और मर्यादाओं की नींव पर टिका होना चाहिए बजाये किसी बेलगाम घोड़े की तरह, बिना दिशा और मंजिल के, आप कितना भी काम करें लेकिन उसमें अगर शालीनता नहीं है तो उस काम की कोई value नहीं है, काम तभी पूरा होगा जब उसे आप हाथ में लेंगें बिना हाथ में लिए कोई भी काम मुमकिन नहीं है, हाथ बढाइये-काम लजिए और उठिए और  ख़त्म होने तक मत बैठिये क्योंकि बिना उठे, बिना चले आपके काम कभी नहीं हो सकते ! काम करते वक्त बस एक बात का ध्यान रखना की काम को करने के लिए आपकी दो चीजों की जरुरत है -आपका स्किल और काम के प्रति आपकी ईमानदारी, अगर यह दो चीजें आपके पास हैं तो निश्चित ही आपको किसी से डरने की जरुरत नहीं है, किन्तु आपके पास कितना भी skill हो और ईमानदारी की कमीं हो तो कभी भी आप अपने काम को पूरा नहीं कर पायेंगें क्योंकि आपका

लोगों की चिंता छोड़िये और अपने घर की तरफ मुँह मोड़िए !

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जब आप अपनी खिड़की पर खड़े हो कर दूसरे के घर में झाँक रहे होते हैं, तो आपके घर की तरफ आपकी पीठ होती है, यानि आप दूसरे पर ज्यादा केंद्रित होते हैं बजाये अपने या अपने परिवार के ! जी हाँ, जब भी हम दूसरे में  परिवार में गलतियां ढूंढ रहे होते हैं तो हम कुछ और नहीं अपनी गलतियों को अपनी कमियों को नजरअंदाज कर रहे होते हैं, जब हमारा सारा ध्यान सामने वाले की तरफ होता है तो अपने पीठ के पीछे अपने घर को हम ignore कर रहे होते हैं, बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज कर रहे होते हैं ! हममें से ज्यादातर लोग दूसरों की कमियां या मीन-मेख में इतने उलझे रहतें की उनके घर में क्या घट रहा है यह उन्हें दूसरे से पता चलता है, इसलिए बजाए दूसरों क के बच्चे -बड़े क्या कर रहे है अपना quality समय अपने परिवार को दें, ताकि किसी और को आपके बच्चे-बड़ों की दिशा और दशा नहीं बतानी पड़े, और आप उनको सही दिशा और गति प्रदान कर सकें ! अपना समय लोगों के बच्चे- बड़े क्या कर रहे है, कैसे हैं इससे बचे, क्योंकि आपके घर को आपकी जरुरत है, बाकी लोग अपना घर खुद संभाल लेंगें, ऐसा न हो की वो लोग तो आगे निकल जाएँ आप अपनी खिड़की पर

जब कभी खूबसूरत राखी को देखें, तो उस मजबूत धागे को जरूर ध्यान में ले आना जो उसे थामे हुए है !

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सोने की परत पर मोती जड़ी 'राखी' अपनी खूबसूरती चारों तरफ बिखेर रही थी, हर कोई उस को देख कर तारीफ़ किये बिना नहीं रह रहा था, 'राखी' यह सब देख अपनी खूबसूरती पर इतरा रही थी, मेरी खूबसूरती का कोई सानी नहीं,  'मैं'  कलाई  की ही नहीं व्यक्ति को भी खूबसूरत बना रहीं हूँ ! यही हाल बुर्ज खलीफ़ा की तरह चमक रही एक 'इमारत' का था, लोगों की तारीफ़ सुन अपने आप पर इतराये बैगैर नहीं रह पा रही थी, 'मैं' अति खूबसूरत ! 'राखी' इससे पहले और इतराती 'धागे' ने अपनी पकड़ ढीली कर ली और धड़ाम से राखी जमीं पर आ गिरी,  यह क्या थोड़ी देर पहले जो राखी अपनी चमक बिखेर रही थी अब धरातल पर थी,  राखी ने धागे से पूछा-"यह क्या किया", धागा बोला-"किसी की कलाई की शोभा तुम तभी तक बड़ा रही थी जब तक मैं तुम्हें कलाई से बांधे हुए था,  वो मैं ही था जो तुम्हें वहां टिकाये हुए था !   यही हाल उस इमारत का भी था जिसका कंगूरा अपनी चमक पर इतरा रहा था बिना इस अहसास के कि जिस दिन नींव की ईंट सरक गई तो ताश के पत्तों की तरह भरभराता हुआ धरातल पर होगा ! जी हाँ, यही जी

खिंचने से बेहतर है खींचिए, चुम्बक बनिए लोहा नहीं,

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खिंचने से बेहतर है खींचिए, चुम्बक बनिए लोहा नहीं, लोहा सदा चुम्बक की तरफ खींचता है, न की चुम्बक लोहे की तरफ, इसलिए खींचिए......., लोगों को अपने गुणों से, अपने संस्कारों से, अपनी काबिलियत से, अपनी मुस्कान से, अपने कर्मों से, अपनी purity से, अपनी सादगी से - जी हाँ चुम्बक बनिए लोहा नहीं....लोग भी सदा उन्हीं की तरफ खींचते हैं जिनमें यह गुण होते हैं ! आप किसी को अपनी और तभी आकर्षित कर सकतें हैं जब आप लोहे से चुम्बक के गुण की तरफ बढ़ेंगें यानी आपको भीड़ से अलग हो कर अपनी एक अलग पहचान बनानी होगी और उस भीड़ से अलग होना होगा जो की लोहे के गुण वाली है और हमेशा दूसरों की तरफ  खिंचने  को तैयार है जो सवभाव से सरल काम है, क्योंकि खिंचने में कम ताकत लगती है बजाये खींचने के ! आप अपने सु-संस्कारों से खींच सकतें हैं अपने बड़ों का प्यार, अपने रिश्तों में मिठास, आप अपनी काबिलियत से खींच सकतें है नए मुकाम,  आप अपनी मुस्कान से खींच सकतें हैं लोगों के चेहरे का दर्द और दे सकतें हैं उनको भी एक मुस्कान, आप अपने कर्मों से खींच सकतें हैं  अपनी मंजिल, अपना मकसद, आप अपनी सादगी से खींच सकत