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Showing posts from July, 2018

अपने सारे बंधन खोल दो, बंधन सारे खोल दो...!

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जिंदगी की नाव के साथ 'त' लग जाए तो तनाव में आ जाती है,  उसी तरह अगर मजबूत  वृक्ष का तना जब 'व ' से जुड़ जाता है तो मजबूत वृक्ष भी तनाव में आ जाता है ! यानि की जिंदगी की नाव को कायम रखना है तो त _नाव में न रखिये किनारा जरूर मिलेगा, उसी तरह परिवार रूपी वृक्ष को मजबूत और कायम रखना है तो उसका तना,तना_व मुक्त होना चाहिए, आप हमेशा तनाव मुक्त रहना चाहते हो तो.......  अपनी मुस्कानों पर लगे_बंधन खोल दो, मस्तिष्क पर पड़े बोझ के सारे _बंधन खोल दो, भूत और भविष्य की उलझनों के_बंधन खोल  दो, बदले की भावनाओं के_बंधन खोल दो, अति की इच्छाओं के_बंधन खोल दो, दूसरों से होड़ और दौड़ के_बंधन खोल दो, अपनी वाणी में मिश्री-मिठास _के बंधन खोल दो, अपनी हार में अपनी जीत_के बंधन खोल दो, अपनी समस्याओं में समाधानों_के बंधन खोल दो, अपने सारे बंधन खोल दो,  बंधन सारे खोल दो......,  मुक्त हो, उन्मुक्त हो !

काम है तो नाम है और नाम है तो काम है....!

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काम से कभी घबराना मत, क्योंकि काम होगा तो ही नाम होगा......! और जब नाम होगा-तभी तुम्हारे पास काम होगा, यानी काम है तो नाम है, और नाम है तो काम है, न काम होगा न ही नाम होगा और न नाम होगा तो न ही तुम्हारे पास कोई काम, कोई भी काम मुश्किल तब तक नहीं होता, जब तक की हम उस काम को मुश्किल न बना दें, पहला- हमारे काम को करने का तरीका किसी भी काम को कठिन या आसान बनाता है, और  दूसरा-  किसी भी काम को करने या उसके पूरा होने से पहले उसके परिणाम की चिंता, यह दो ऐसी बातें हैं जो काम का अंजाम तय करतीं हैं, और वह भी उसके शुरू या कहें पूरा होने से पहले, कोई भी काम नामुमकिन नहीं है, हमारा नजरिया उसको मुमकिन या नामुमकिन बनता है , कभी भी किसी काम की शुरुआत 'न' से न करिए, क्योंकि 'न' की नींव पर सफलता की इमारत कभी खड़ी नहीं हो सकती, सफल व्यक्ति कोई अनोखा काम नहीं करते बल्कि लोगों के 'न' किये गए काम को समय पर पूरा करते हैं और 'न' शब्द उनकी किताब में नहीं होता,  मौके बार-बार नहीं मिलते पर उन मौकों को सही समय पर पकड़ना और उन्हें पूरा करना

आपकी पहली और आखिरी प्राथमिकता, आपका परिवार होना चहिए !

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आप अपने कार्यक्षेत्र के बादशाह हो सकतें हैं, आप अपनी कम्पनी के लिए तुरुप का इक्का हो सकतें हैं, किन्तु अगर आप अपने घर के, अपने परिवार, अपनी जिम्मेदारियों के, अपने आप के बादशाह नहीं हैं, तो तुरुप के इक्के को किसी  वक्त  भी  धराशाई होने में देर नहीं लगेगी ! समझने की बात यह है की आपको अपने जीवन में अपनी प्राथमिकताएं खुद तय करनी पड़ेगी और वह भी वक्त रहते, "समय" मात्र तीन शब्द नहीं हैं , अगर इसे उल्टा करदें तो "यम" स किसी भी वक्त सामना हो सकता है, यानि आपके पास वक्त सीमित है !  जिंदगी में कुछ काम, कुछ जिम्मेदारियां भगवान् ने जो आपके हिस्से में रखीं हैं वो आपके सिवा कोई और नहीं पूरा कर सकता, किन्तु उनको पूरा करने के लिए आपको समय निकलना होगा यानि बात फिर समय पर आकर रूकती है  यानी आप अपने परिवार के लिए अपने माता-पिता, अपने बच्चों, अपनी पत्नी, अपने भाई-बहनों के लिए समय निकालें, उनके काम आएं,  उनके सुख-दुःख के हिस्सेदार बनें, भगवान् से सदा यही प्रार्थना चाहिए की " मुझे इतनी ताकत देना की मैं अपने और अपनों के काम आ सकूँ"! तुरुप के इक्के बनिए अपने परिव

मैं कौन हूँ ? मैं क्यों हूँ ? में कब तक हूँ ?

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मैं कौन हूँ  ?  मैं क्यों हूँ ?  में कब तक हूँ ? मैं कौन हूँ ?  मैं एक किताब हूँ जिसके ज्यादतर पन्ने मेरे माता- पिता ने लिखें हैं, जिसको पढ़ कर कभी मेरी सफलता पर उनकी आँखों में ख़ुशी के आँसूं निकले होंगें, और जब कभी उनकी उम्मीदों को मेने तोड़ा होगा, उनके अरमानों को दबाया होगा, उनके आगे बड़े हाथों को जब नजरअंदाज किया होगा तो दुःख के आंसूं भी निकले होंगें, मैं वो किताब हूँ जिसकी तस्वीरों को मेरे बच्चों ने उल्टा पुल्टा होगा, अपने अरमानों की लकीरों को उसके पन्नों पर उकेरा होगा और जिनको पढ़ कर आगे बढ़ने के सपने देखे होंगें, मैं वो किताब हूँ जिसको मेरी पत्नी ने बहुत संजों कर रखा होगा अपने भविष्य के लिए , हाँ में वो किताब हूँ जिसके कुछ पन्नों को मेरे अपनों ने फाड़ा होगा, मरोड़ा होगा अपने  मतलब के लिए........! मैं क्यों हूँ ? मैं एक किताब हूँ और इसलिए हूँ, जिसको पढ़ कर मेरे अपने अपना सफर पूरा कर सकें, मेरी गलतियाँ उनके  लिए सबक हों, और मेरी सफलताएं उनके लिए मिसाल बनें !  मैं कब तक हूँ ? मैं कल भी था, मैं आज भी हूँ और मैं कल भी रहूँगा, जिसको मेरे साथ के आज भी पढ़ रहे हैं और आन

सफलता और सकारात्मकता का अटूट रिश्ता है !

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सफलता और सकारात्मकता का अटूट रिश्ता है ,  सफलता उस लता की तरह है, जो सकारात्मकता की सीढ़ी पर तेजी से आगे बढ़ती है,  कभी भी ऊपर जाने के  लिए हमेशा एक सीढ़ी की जरुरत होती है, और हमेशा अगर सीढ़ी  मजबूत होगी और सही होगी तो हम आत्मविश्वास  के साथ अपनी मंजिल तक पहुंचेंगे ! जी हाँ,  सफलता भी तभी मिलती है जब सीढ़ी सकारात्मकता की हो,  यानी आपके विचार सकारात्मक हों,  हममें से बहुतों को अत्यधिक प्रयास के बाद भी सफलता नहीं मिलती कारण यह नहीं है की हमारे प्रयास में कोई कमी थी, कारण यह है की हमारे कार्य करने की दिशा और हमारे विचारों की दशा सही नहीं होती, हम हार के डर से आपने प्रयासों को बीच में छोड़ देतें हैं और समय से पहले हार मान लेते हैं, यहीं सकरात्मक विचार हमारे काम आतें हैं, और हम अपना सफर बिना किसी मुश्किल के पूरा कर पाते हैं,  सकारात्मक  विचारों की वजह से हार और जीत हमारे लिए मायने नहीं रखते और अपनी पूरी एनर्जी के साथ हम अपनी मंजिल को पाते हैं ! सफलता उस लौ की तरह है जो सकारात्मकता के दीपक में जलती है, हमेशा ध्यान रखियेगा की नकारात्मकता की आंधियां इनको डिगाने की, बुझाने की बहुत कोशिशे

बच्चे रहोगे, तो बचे रहोगे !

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बच्चे रहोगे, तो बचे रहोगे  ऐसा बहुत बार और बार- बार कहा और सुना जाता है लेकिन क्या यह वास्तव में हम अपने जीवन में लागु करते हैं, जी हाँ हम बड़े होने और अपने आप को बड़ा साबित करने की दौड़ में और दूसरे से होड़ में अपने बचपन का गला घोंट रहे हैं, इसलिए समय रहते बच्चे बन जाओ, अगर अपने जीवन में मुस्कुराते रहना चाहते हो तो !  एक पंजाबी गीत है- की मेरा बचपन मोड़ देओ , संग खुशियां जोड़ देओ.......! जी हाँ हर बार जैसे-जसे हम अपने जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं, बीता हुआ समय हमें अक्सर याद आता है,  हमें अपना बचपन बहुत याद आता है क्योंकि यही बचपन हमारे जीवन का वह समय होता है जब हमें, किसी चीज की कोई परवाह नहीं होती, न कुछ पाने की चाहा, न कुछ खोने का गम, न किसी बात की कोई चिंता-न कोई फ़िक्र, बस एक बहती हवा की तरह हम उड़ते-फिरते, उन्मुक्त परिंदों की तरह जहाँ कोई कोई सीमा नहीं,  only sky is the limit.... .!    बड़े बनने के प्रयास में, या यह कहें की बड़े बनने के दिखावे में हम वर्तमान के आनन्द से पूरी तरह वंचित रह जातें हैं, समय से पहले बड़े न बनें !  आपकी उम्र कोई भी क्यों न हो, आप किसी भी परिस्थि

सफलता यूँ ही नहीं मिलती, उसके लिए कुछ हट कर करना पड़ता है !

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अगर जीवन में सफल होना चाहतें है तो सफलता  के कुछ मोती हैं, किन्तु इनको एक माला में, एक सूत्र में पिरोने का काम आपका है: १) "मैं " से आगे भी जिंदगी है , "मैं"  से  "हम"  का सफर इसी वक्त शुरू करिए ! २) मंजिल मिलने की कोई गारंटी नहीं है लेकिन सफ़र ज़ारी रखना, हीरे न भी मिलें तो कोई बात नहीं पत्थर में भी भगवान् बसता है ! ३) सफ़र में सब एक ही मिट्टी के माधो नहीं मिलेंगें, कुछ पत्थरों से भी सिर फोड़ना पड़ेगा लेकिन इससे  बेहतर है  कि उनको नज़रअंदाज़ कर साइड से निकल जाएँ ! ४) आपकी मुस्कान बहुतों को खटकेगी, पर उनके लिए अपनी मुस्कान कभी मत छोड़ना.....कभी भी  नहीं ! ५) किसी को फॉलो करना कोई बुरी बात नहीं है पर लीडर बनने का प्रयास कभी मत छोड़ना, एक दिन   आपके भी फॉलोवर होंगें ! ६) मौन की गूंज जबरदस्त है-अपने शब्दों का सही चयन, सही समय पर करें ! ७) तूफानों में अपनी रफ़्तार कम करें, क्योंकि तूफ़ान का थमना तो तय है पर उससे भिड़ना मूर्खता है ! ८)  आपकी पहचान हमेशा दो चीजों से होगी-आपके शब्दों से और आपके कर्मों से,  इसलिए दोनों पर स

खुशियां तलाशिये नहीं, खुशियां आपके भीतर हैं !

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किसी ने कहा है की जिंदगी तुम भी कच्ची पेंसिल की तरह हो, हर रोज छोटी होती जा रही हो....., मैं कहता हूँ की जिंदगी तुम एक अच्छी पेंसिल की तरह हो, हर रोज मेरी कोरी क़िताब स्वर्णिम अक्षरों से भर्ती जा रही हो....! जी हाँ, यह आप पर है की जिंदगी की कैनवास पर आप कौन सा रंग भरते हैं-श्वेत-श्याम  या फिर रगों से भरी कैनवास, जिंदगी आपको हर क्षण जीने का मौका जरूर देती है,  यह सिर्फ आप पर निर्भर करता है की आप अपना हर क्षण जिएं और और हमेशा इस क्षण में जिएं, न भूत में न भविष्य में, जिएं तो सिर्फ अपने वर्तमान में जिएं और अपनी जिंदगी के हर क्षण में  रंग-बिरंगे रंग भरें, और हर क्षण का आननद लें ! आपकी ख़ुशी की चाबी आपके पास हैं, आपके गम के ताले आपकी चाबी से ही खुलेंगें और वह भी सिर्फ और सिर्फ आपकी ख़ुशी की चाबी से, किसी और की चाबी इस ताले में कोई काम नहीं करेगी, इसलिए चाबी तलाशिये नहीं क्योंकि वो तो आपकी अपनी मुठ्ठी में है ! खुशियां तलाशिये नहीं,  कोई आधा गिलास खाली देखता है, कोई दिये तले अँधेरा देखता है, कोई रात के अँधेरे देखता है लेकिन आप उन जैसे  बनिए जो दिन के उजालों को देखते हैं, आधे भ

जिम्मेदारी ताकत को बढ़ाती है, और ताकत के आगे हर जिम्मेदारी छोटी है !

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एक व्यक्ति था वह अपने हाथ की गेंद को ऊपर फेंकता लेकिन गेंद फिर उसके हाथ में आ जाती, इस बार उसने गेंद ताकत से फिर ऊपर  उछाली, लेकिन यह क्या गेंद फिर उसके हाथ में आ गई, अब की बार उसने अपने अंदर की सारी ताकत लगाई और गेंद को बहुत जोर से ऊपर उछाला लकिन गेंद फिर से उसके हाथ में थी.......! जी हाँ, वो व्यक्ति कोई और नहीं आप या हम में से ही एक है और वह गेंद कुछ और नहीं वह हमारी  जिम्मेदारी है, जिसको हम बार-बार किसी और के लिए उछालते हैं पर अंत में वह हमारे पास लौट कर आती है, वापिस हमारे पास और दुगनी  साथ, यह बात हमें बताती है की कभी भी आप अपनी जिम्मेदारी से भागिए नहीं, बल्कि उसमें भाग लीजिये, चूँकि गेंद आपकी है और आप गेंद के लिए, इसलिए गेंद यानि की अपनी जिम्मेदारी का आन्नद लीजिये न की इसको इधर-उधर उछालते रहे, आप जिस किसी भी चीज से बचना चाहेंगें तो वह चीज आप पर उतनी हावी होती जाएगी, इसलिए समय रहते अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर डालें ! जी हाँ जिम्मेदारी एक गेंद की तरह है, और अगर आप एक परिवार या किसी समहू का हिस्सा हैं, तो इस  गेंद से फुटबॉल का खेल खेलिए, जिसमें  किसी भी गोल को पाने या

हमेशा जिंदगी में बड़े बनिए, बूढ़े नहीं....!

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हमेशा जिंदगी में बड़े बनिए, बूढ़े नहीं....! जी हाँ आप घर के बड़े हैं- तो बड़े बनिए अपने विचारों से, अपने निर्णयों से, अपने कर्मों से, अपनी ज़िम्मेदारियों से, अपने शब्दों से- आप बढ़े हैं जी हाँ बढ़े हैं कतई भी बूढ़े नहीं....आप अपने आस-पास अपने से बहुत कम उम्र के लोगों को समय से पहले समर्पण करते देखा होगा, अपनी जिम्मेदारियों से पलायन करते देखा होगा क्योंकि वह बड़े नहीं, बूढ़े हैं अपनी उम्र से नहीं अपने मन से ! आप का मन बड़ा हो और आप मन से बड़े हों, यही जीवन है ! कभी हार न माने, बड़े बनिए बड़े होने में जो आंनंद है उसको शब्दों में कभी बयान नहीं किया जा सकता, हमेशा याद रखना बूढ़ा होना बहुत आसान है पर बड़ा होना बहुत कठिन है, लेकिन कठिन काम करिए क्योंकि जो रास्ते काँटों भरे और कठिनाईओं भरे होते हैं, उनकी मंजिल उतनी ही खूबसूरत होती है और लम्बे समय तक उसका आनंद रहता है ! आपका बड़ा होना बहुत जरुरी है, आपके लिए ही नहीं आपके परिवार और आपसे जुड़े हुए लोगों के  लिए भी...ताकि आप उनको सही दिशा और गति प्रदान कर सकें ! बड़े और बूढ़े  का अंतर समझिये,  ताकि आप किसी पर निर्भर न रहे, अपनी जिम्मेद

परिवार को सर्वोपरि स्थान दें, जिसमें सम्मान हो और सब सामान हों !

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परिवार आपके जीवन में सर्वोपरि होना चाहिए, ऐसा हम सब जानते हैं, लेकिन मानते नहीं हैं-  हम इस धारणा को छोड़ते जा रहे है, अपनी दिशा और दशा से भटक रहे हैं-  यही वक्त है जब अपनी रफ़्तार, अपनी महत्वकांक्षाओं, अपने अहम् को और वहम को  विराम देने की, और अपने परिवार अपने माता-पिता, अपने बच्चों, अपनी पत्नी को समय दें, समय को समय दें, ऐसा न हो मंजिल की तलाश में अपने और उनके सपने आपके क़दमों के तले दब कर रह जाएँ, आपका परिवार ही आपकी एकमात्र ताकत है और कठिन वक्त में एक मजबूत दीवार की तरह आपके साथ है, बाकी सब व्यर्थ है, इसको अगर आजमाना है तो अपना सबसे बुरा वक्त याद कर लेना, जब पिता का हाथ तुम्हारे कन्धों पर होता होगा और तुम्हारा सिर अपनी माँ की गोद में, उसी हाथ और उसी गोद ने कितनी बार तुम्हे कठिन समय से तारा होगा और निखारा होगा ! जब कभी परिस्थितियां विपरीत हुई होंगीं, तो आपको आपकी पत्नी और बच्चों की एक बात हमेशा याद आती होगी  की "यह समय भी बीत जाएगा, कल तुम्हारा था और कल भी तुम्हारा होगा और जरूर होगा " ! परिवार को सर्वोपरि स्थान दें, जिसमें सम्मान हो और सब सामान हों , हाथ उठे

मुस्कराहट की आहट, जबरदस्त है एक बार कर के तो देखिए !

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मुस्कान से बड़े से बड़ा इलाज संभव है, यह इलाज करती है आपके दर्द का और यह इलाज करती है सामने वाले के मर्ज का,  मुस्कान आपके चेरहे की आपको हल्का करती है  और सामने वाले को आपकी तरफ आकर्षित करती है, मुस्कुराते हुए चेरहे किसे अच्छे नहीं लगते, इसलिए सदा मुस्कुराइए ! मुस्कुराने के लिए किसी मुहर्त का इन्तजार न करिए- मुस्कुराइए तब भी जब दर्द आपका चरम पर हो, दुःख  चरम पर हों, परिस्थितियां आपके प्रतिकूल हों, जब रास्ते सारे बंद होते से लगें, रात का अन्धकार अपनी पराकाष्ठा पर हो,कदम लड़खड़ाते से लगें, अपने मुहं फेरते से लगें, मंजिलें ओझल  सी होती लगें, रास्ते कठिन होने  लगें......तब, मुस्कुराइए अपनी सबसे जबरदस्त मुस्कराहट दें, और अपने आप से कहें की सब कुछ ख़त्म होने को है पर मेरी मुस्कान अभी जिन्दा है.... ! जी हाँ, इन सभी परिस्थितियों से अगर आपको कोई बाहर निकाल सकता है तो वह है आपकी मुस्कराहट, इसमें बहुत ताकत इसका इस्तेमाल  करके तो देखिये उपरोक्त सभी परिस्थितियां छोटी लगने लगेंगीं ! नहीं होती आवाज इसकी,  बस एक बार चेहरे पर भर के तो देखिए !