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गुरु का पर्व...... सबसे बड़ा पर्व है !

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गुरु का पर्व.....सबसे बड़ा पर्व है, क्योंकि हर गुरु हमारे जीवन-सफर में कहीं न कहीं, कभी न कभी- हमारे रास्तों को रोशन करते चलते हैं, हमारे अंदर के ज्ञान को रोशन और दने के सुख का विस्तार करते चलते हैं, पुराने जमाने में हमारे माता-पिता, दादा-दादी हमेशा हमें गुरुओं की वाणी, उनके विचार- उनकी कहानियां हमें अक्सर सुनाते थे जो की आज भी हमारे भीतर, हर कण-कण में रच-बस गए हैं, और जो कहानियां और विचार हमें सदा प्रेरित करती रहती हैं, हमें अपनी मंजिल की तरफ आगे ही आगे को बढ़ने को......उनके विचारों, उनके संस्कारों को मानना और उन्हें दिल से अपनाना ही असल में गुरु का पर्व है और सही मायनों में अपने गुरु की दक्षिणा है ! सदा गुरु-पर्व मनाते चलें, हर दिन-हर क्षण एक पर्व हो....मात्र पर्व का इन्तजार ना हो, हर क्षण  एक उत्सव हो.....जीवन एक उत्सव हो, बस एक बार उस उत्सव का आनन्द लेकर तो देखिये !

नमन हर माँ को......!

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एक खुला आसमान है वो, अपने आँचल पर अनगिनत सितारे लपेटे हुए, एक अनंत समंदर है वो, अपने अंदर तूफानों को और लहरों को समेटे हुए, एक सुन्दर मूरत है वो, ममता की मिटटी से बनी जिसके कण-कण में मम्तत्व है -अपनत्व है, एक दिया है वो औरों को रोशन करती हुई, वो पतवार है, हर किश्ती की जिसे किनारे की तलाश है, वो रास्ता है , हर मुसाफिर की जिसे मंजिल की तलाश है, वो एक सूत्र है हर बिखरे मोतियों को एक धागे में पिरोती हुई, वो जिसने हमेशा दिया और सिर्फ दिया, अपने दोनों हाथों से दिल खोल कर, न किसी से कुछ पाने की चाहा, न किसे से कोई उम्मीद, जीवन के कड़वे घूटों को पिया उसने, और अपने होठों को सदा सिया उसने, हाँ,  माँ  है वो...... ,  उसने अपने जीवन सफर में क्या हासिल किया इस पर गौर करना, अपने बेशकीमती समय से क्या रत्ती भर समय क्या दिया उसको, इस पर गौर करना , क्या पाया उसने और क्या गवायाँ  उसने....... ? उसका कर्ज, जो शायद सात जन्म लेकर भी तुम न चूका सको, पर एक कोशिश तो करना की उसका रत्ती-माशा तो इस जीवन में ही चुकता हो जाए ! नमन हर माँ को......!