ऊपर चढ़ें, आगे बढ़ें - किसी को सीढ़ी, किसी की घोड़ी बना कर नहीं !
माटी सिंह ऊपर की तरफ चढ़ने और आगे बढने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार था, उसका एक ही मकसद था किसी को भी गिरा कर, किसी को भी दबा कर किसी भी तरह ऊपर पहुंचा जाए, साम-दाम दंड भेद जो भी लगे उसका इस्तेमाल करो, जैसे भी हो, जो भी हो मकसद सिर्फ और सिर्फ एक ऊपर पहुंचना...! माटी सिंह ने सीढ़ी लगाईं और झट से एक–एक पायदान चढ़ने लगे और वह ऊपर चढ़ते जाते और साथ-साथ नीचे वाले पायदान को काटते जाते, लोगों ने पूछा माटी सिंह जी नीचे के पायदान काटने का क्या मकसद है, जनाब आखिर आप ऊपर चढ़ रहें पर नीचे की सीढ़ी साफ़ करते जा रहें हैं......, पर माटी सिंह के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था, की मैं तो ऊपर पहुंचूं पर कोई दुसरा इस सीढ़ी का इस्तेमाल न कर सके, माटी सिंह की सोच....हमसे मिलती जुलती भी हो सकती है....और शायद नहीं भी, काश ऐसा ही हो ! माटी सिंह को ऊपर पहुँचने में बहुत समय लग रहा था क्योंकि उनका ध्यान दोनों तरफ था, जितनी ज़्यादा मेहनत उनको सीढ़ी चढ़ने में नहीं लग रही थी उससे ज्यादा मेहनत उनको सीढ़ी के पायदान काटने में लग रही थी यानि वह अपनी ताकत को सही दिशा की बजाए गलत दिशा में लगा रहे थे ! उ