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Showing posts from January, 2018

नकारात्मक लोगों व उनकी बातों से अपने आप को अलग कर लें, ताकि इस वायरस का आपके तन और मन पर कोई प्रभाव न पड़े !

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हर बात, हर शब्द, हर वस्तु, हर लोग...... जरुरी  नहीं है की आप के लिए ही हों, उन पर आपका नाम लिखा हो, पर हम में से ज्यादातर लोग हर बात को, हर चीज को भाग कर पकड़ने के लिए इतने आतुर होते हैं की जो बात, जो शब्द चाहे किसी और के लिए भी कहें गए हों , उनका बोझ उठा लेते है, जैसे पूरी दुनिया का वजन शायद उन्ही के लिए है, और अगर वह उसे नहीं उठाएंगे तो प्रलय आ जाएगी ! भगवान ने  उनको सिर्फ धरती पर जैसे इसी लिए ही भेजा हो कि "जाओ वत्स, दुनिया के लोगों का बोझ हल्का करो.....मैं किसी को भी दूँ, तुम उसको लपको तुम्हारे लिए हो या नहीं फिर भी लपको और फिर उस बोझ के वजन से......टपको "! ऐसे लोग हमेशा दुःखी रहतें हैं और अपने आस-पास के लोगों को भी दुःखी रखतें हैं, उनके आस-पास नकारात्मक वातावरण हमेशा  बना रहता है, यह वो लोग होते हैं जो किसी भी चर्चा के बाद आपको यह बताने से नहीं चुकेंगें की फलाने ने जो कटु वचन कहें  हैं  वो आपके लिए थे, आप चाहे या न चाहे वो बार- बार आपकी दिशा को बदलने का प्रयास करेंगे, पर आप कायम रहे क्योंकि कुछ समय पश्चात यही लोग आपको इन शब्दों के बोझ तले दबे मिलेंगे ! एक बात जी

बबूल बोया है..... तो काँटों के लिए तैयार रहें !

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जीवन  में कुछ भी करना, कैसा भी करना, किसी के साथ भी करना पर बस इतना ध्यान रखना.....,  हर चीज, हर बात, तुम्हारा हर कर्म, दूसरों के साथ किया गया बर्ताव-लौट-लौट कर वापिस आता है, तुम्हारे इस जीवन-चक्र में, तुम्हारे द्वारा किये गए कर्मों का फल बिना भुगते.... और वह भी  ब्याज सहित,  तुम कभी भी मुक्त नहीं हो सकते, अपना सफर ख़त्म नहीं कर सकते....कभी भी नहीं ! जो तुमने दिया है..... एक दिन तुम्हारे पास वापिस जरूर आएगा,  अगर बबूल बोया है..... तो काँटों के लिए तैयार  रहना ! प्रयास यह हो कि आपके द्वारा किसी का कभी बुरा न हो, न ही बुरा करने का कभी प्रयास हो,  किसी का भला न भी कर सको तो ध्यान रखना, किसी का तुम्हारे हाथों- तुम्हारी बातों से, बुरा भी न हो.... तभी तुम्हारा जीवन सफल है, और इस धरा में आना सार्थक है ! अक्सर हम अपने बड़े-बुजुर्गों से अच्छा बर्ताव नहीं करते, और ऐसा करते वक़्त हम बस एक बात भूल जातें है की इस दौर से हमें भी गुजर कर जाना है, दुनिया में कोई ऐसा नहीं हो जो उम्र के इस दौर को छलांग मार जाये, इस दौर से न कोई बच कर निकल पाया है न निकल पाएगा, तुम भी नहीं......  इ

तुमसे बड़ा कौन.......तुम्हारा मौन !

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मौन की गूँज ......... बहुत दूर तक और देर तक रहती है  ! जब भी आपको लगे कि परिस्थितियां, समय, लोग आपके साथ नहीं हैं.........तो बस एक छोटा सा, पर बहुत बड़ा काम करना - मौन हो जाना, बाहर से भी और अपने भीतर से भी ! आप जो बोल कर हासिल नहीं कर सकते, मेरा दावा है कि उसको आप अपने मौन से हासिल कर सकतें हैं , एक बार आप इसको अजमाकर देखिये, आप पाएंगे कि ज्यादा बोलने वाले लोग अक्सर नुकसान में रहतें हैं, आप ज्यादा  बोल कर न सिर्फ अपनी ऊर्जा कम कर रहें हैं बल्कि अपने दुश्मनों की संख्या का विस्तार भी कर रहे हैं ! उतना बोलिये जिससे कि आप अपनी बात, अपना पक्ष मजबुती के साथ रख सकें, व्यर्थ की चर्चाओं से बचें,  बहस का कोई अंत नहीं है, वह अनंन्त है........ उसमें न पड़ें और उससे समय रहते अपने को अलग कर लें , यह सूत्र जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है चाहे वो परिवार हो या बाहर हो ! कहा भी गया है 'एक चुप सौ  सुख',  पर में कहता हूँ- "तुमसे बड़ा  कौन......... तुम्हारा मौन "! जब किसी बहस में आप मौन हो जातें हैं तो - बहस छोटी और आपका कद बड़ा हो जाता है, किसी भी चीज़ को हासिल करने का स

अपनी ऊर्जा को सही दिशा और दशा दें और ऊर्जावान बनें !

तुम्हें आगे बढ़ते और सही राह पर चलते हुआ देख बहुतों को यह तकलीफ हो सकती है की यह इस रास्ते पर, सही रास्ते पर क्यों है, इस मुकाम पर क्यों है ! यह हर काम सही तरह से कैसे कर पा रहे हैं, सबके विश्वासःपात्र क्यों है ? सबसे बड़ा दुःख.... मेरा दुःख,  नहीं जनाब, उसका छोटा सा सुख......मेरा सबसे बड़ा दुःख ! यही विडंबना है.... इस जीवन की ! तकलीफ सबसे बड़ी यह  कि मेरा हाथ......मेरा साथ खाली, तो इसकी झोली भरी हुई कैसे ! हममें  से ज्यादातर लोग अपनी सारी ऊर्जा, दूसरे कुछ हासिल न कर सकें इसमें लगा देतें हैं , बजाये इसके की खुद कुछ हासिल करने का प्रयास करें ! हम जितनी ऊर्जा दूसरे को पीछे और नीचे  खींचने में लगाते हैं, मेरा दावा है की इस ऊर्जा का मात्र दस  प्रतिशत भी अगर हम अपने को आगे ले जाने में लगायें तो दुनिया की कोई भी ताक़त  हमें एक सम्मानिए मुकाम  तक पहुंचने से नहीं रोक सकती, यह निश्चित है ! ध्यान रहे एक अणु का छोटा सा कण कुछ भी कर सकता है......... परमाणु के  सदुपयोग से जिस तरह हम बिजली का उत्पादन भी कर सकतें हैं और चाहें तो  परमाणु विस्फोट कर विनाश भी, यह आप पर और सिर्फ आपकी सोच पर है कि

जब गुरूर...... का 'र' हटता है, तब गुरु का जन्म होता है !

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गु रु कौन  है ?......... जब गुरूर...... का 'र'  हटता है, तब गुरु का जन्म  होता है, और जब उसके अंदर का अहम.......हम में  तब्दील होता है, तब गुरु परम....... चरम पर होता है ! गुरु सिर्फ वह नहीं है जिसने किताबी ज्ञान प्राप्त किया है या कोई डिग्री हासिल की हो ! गुरु एक ऐसा तत्व है जो आपके अंदर से पैदा होता है और उसका प्रतिबिम्ब बाहर झलकता है! गुरु के उम्र की कोई परिभाषा नहीं है ...... वह कोई भी हो सकता है एक उम्रदराज भी....और एक बालक भी, गुरु वो है जो हमें कही भी, कभी भी कुछ न  कुछ सीखा जाये! जिसकी बातें आपके अंदर तक जाएं और आपको यह अहसास कराएं की अभी मेरे अंदर कुछ कसर बाकि है.....उसकी बातें  सही रास्ता दिखाएं ! जब हम कहतें हैं  की बच्चों की तरह मुस्कुराएं , तो वह बालक हमारा गुरु हुआ जो हमें बताता है की वर्तमान में जियो..... बेफिक्र हो कर  जियो....कल की चिंता से मुक्त हो...उन्मुक्त हो कर जियो......न कोई उसमे गुरुर, न किसी से उसकी दौड़ , न उसमें कोई अहम........न उसको कोई वहम ! आज  हर कोई गुरु बनना चाहता है , लेकिन पहले जरुरी है कि हम अपने अंदर गुरु-तत्व को विकसित करें.....

परछाइयाँ साथ न देंगी, पर अच्छाइयाँ अटल हैं - जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी...!

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 दो चीजें जीवन भर  आपके साथ चलेंगी - एक आप की परछाई, और दूसरा आपकी अच्छाई ....! दोनों आपका ही स्वरुप हैं.........पर दोनों में जमीन-आसमान  का  फर्क  है ! पहले बात करते हैं परछाई  की......... यह  हमारा  वह  स्वरूप  है जो कि समय के अनुसार, दिशा -दशा के अनुसार, बाहरी प्रभाव  से जैसे- सूर्य की दिशा, बादलों की उपस्थिति , समय  आदि के अनुसार बदलता रहता  है !  यह असल में हमारे  जीवन का वो रूप  है जिसमें हमारे अंदर के निहित गुण, values   जाने-अनजाने किसी बाहरी व्यक्ति..........परिस्थति से प्रभावित होते हैं और जिसका परिणाम, हम अपने  core को, अपने अंदर के  निहित गुणों  को छोड़, अपनी सही दिशा और गति को भूल दूसरी दिशा की तरफ मुड़ जाते हैं ....... और यही से हम अपने हाथ से, अपने जीवन की डोर किसी और को समर्पित कर देतें  हैं !  आपका  विवेक, आपकी बुद्धि  सब धरा रहा जाता है और हमेशा किसी प्रभाव का या अभाव का असर हमारे हर काम में झलकता रहता है..... ध्यान  रहे न किसी के प्रभाव में जिएं न किसी अभाव में जिएं ..... यही जीवन की सफलता का मूल मंत्र है ! परछाईआं आपके साथ चलती हैं,  पर बाहरी परिस्थ

जो भी करें, जब भी करें उसमे अपना सौ प्रतिशत दें.....!

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जो भी करें, जब भी करें उसमे अपना सौ प्रतिशत दें....... ! अक्सर जब हम यह कहतें है की मैं हार गया, जबकि मैनें अपनी तरफ से प्रयास बहुत किया, तो  हमेशा याद रखिए की आपका प्रयास जरूर रहा होगा लेकिन आपके प्रयास में कहीं न कहीं, कुछ न कुछ कमी जरूर रही होगी, आपका प्रयास सौ प्रतिशत, सौ नहीं होगा !  याद रखिए जो भी काम करें पूर्णता से पूरा करें, जिम्मेदारीपूर्वक करें....अपना सौ प्रतिशत लगा कर करें, परिणाम से मुक्त हो कर करें....अपने दायरों  से बाहर निकल कर करें..... अपने बंधन खोल दें, किसी भी काम को पूर्णतया मुक्त हो कर करें...उन्मुक्त हो कर करें ! कोई भी जिम्मेदारी जब भी हम पर आती है, तो हमारे मन में अक्सर कुछ इस तरह के विचार सबसे पहले आते हैं: १) यह कैसे होगा ! २) इसका परिणाम क्या होगा ! ३) मेरे से नहीं होगा ! ४) लोग क्या सोचेंगे......क्या कहेंगे ! ५) यह मेरा काम नहीं है ! ६)  मेरे पास अभी समय नहीं है ! ७) यह काम बेकार है ! ८) अगर दूसरा इसको करता तो कैसे करता ! ९) मेरी इस काम में मदद कौन करेगा ! इत्यादी-इत्यादी...... मैं बस इतना कहूँगा...अपने बंधन खोल दें,

हर क्षण एक उत्सव है, कटनें और काटने....बटनें और बाँटने से बचें, यही जीवन है !

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मकर - संक्रांति ...... एक उत्सव ! हम दान पुण्य   करेंगे ..... पतंग उड़ाएँगे , जीवन भी एक पतंग की तरह है जिसकी डोर भगवान   ने   अपने हाथ   में रखी   है ! जब हम ज्यादा हवा में , अपनी जमीं   को भूल .... अपनों को भूल , अपनी डोर ....... अपने को उत्पन्न   करने वाले - अपनी उत्पति को   भूल , आगे और भटकने   का , कटने    और काटने का प्रयास करते    हैं , तो वह हमारी डोर   को लपेटना   शुरू कर देता है .... हमें हमारी जमीं   की तरफ , हमें   हमारी उत्पति की तरफ , हमें अपने - अपनों   की   तरफ ...... लाना शुरू कर देता है ! यही सत्य   है और यही सुन्दर   भी .....! जीवन में   मैनें क्या पाया है उससे ज्यादा जरुरी है की उसको पाने के सफर में मैंने क्या खोया है ,  मैनें अपनी उड़ान , अपनी मंजिल को पाने के सफर में   कितनो को   काटा है,  कितनों  को    बांटा है  !  बढिये- चढ़िये , लेकिन किसी को सीढ़ी बना कर नहीं, किसी के  अरमानों  को दबा कर नहीं,   अपने कदम ..... अपना  सफ़र , अपनी उड़ान ,  अपनी