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Showing posts from September, 2019

एक बार उठकर तो देखिए, इसमें नीचे गिरने से ज़्यादा मजा है....!

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आप को प्रोवोक करने के लिए हर तरफ़ से प्रयास होंगें, हर कोई आपको उठता हुआ आगे बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहेगा, आपको गिराने के हर प्रयास होंगें, जो कभी ऊंचाइयां नहीं देख सकते वह आपको भी जमीन पर गिराना चाहेंगें,  आप कितना भी बचना चाहे  पर वह आपको बचने न देंगें, लेकिन आप को इनसे बचना ही होगा अपने लिए ही नहीं बल्कि उन लोगों के लिए भी जो आपको आगे बढ़ता हुआ नहीं देख सकते ताकि वह इस ग़लतफ़हमी  रहे क उठने वाले भी दम रखतें हैं ! ऐसे लोगों से बचने के दो ही तरीकें हैं- ऐसे लोगों से पूरी तरह से अपनी दूरियां बना लें अपने आप को उनसे बिलकुल अलग कर लें, उनकी  नकारात्मकता आपकी परछाई को भी न छू पाए ! या  एकदम मौन हो जाएँ इनका शिकार होने से बचें, आपका मौन इनकी चीख से ज्यादा वज़नदार है आपकी  चुप्पी की आवाज़ न होगी पर इसकी गूँज बहुत देर तक रहेगी !   अब यह आपको तय करना है की इनसे 'ब-चना' है या इनका शिकार  होना है, शिकारी तो तैयार हैं  आपको किसी भी स्तर तक गिराने के लिए और खुद किसी भी स्तर पर गिरने  लिए ! हमेशा याद रखना गिरने के कोई सीमा नहीं होती, सीमा तो ऊपर उठने की होती है दुनिया हमेशा आपको

'स्थापना' और 'विसर्जन'!

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वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।  निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्व दा ॥ हे हाथी के जैसे विशालकाय जिसका तेज सूर्य की सहस्त्र किरणों के समान हैं । बिना विघ्न के मेरा कार्य पूर्ण हो और सदा ही मेरे लिए शुभ हो ऐसी कामना करते है । गणपति की स्थापना और फिर उसका विसर्जन..... । धार्मिक ग्रंथो के अनुशार जब वेदव्यास जी ने महाभारत की कथा भगवन गणेश जी को दस दिनों तक सुनाई थी तब उन्होंने अपने नेत्र बंद कर लिए थे ! और जब दस दिन बाद आँखे खोली तो पाया की भगवान् गणेश जी का तापमान बहुत अधिक हो गया था। फिर उसी समय वेदव्यास जी निकट स्थित कुंड में स्नान करवाया था ! जिससे उनके शरीर का तापमान कम हुआ ! इसलिए गणपति स्थापना के अगले दस दिन तक गणेश जी की पूजा की जाती है ! और फिर ग्यारहवे भगवान् गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है। गणेश विसर्जन इस बात का भी प्रतीक है-की यह शरीर मिटटी का बना है.और अंत में मिटटी में ही मिल जाना है। गणपति की स्थापना और फिर उसका विसर्जन.....हमें यह बताता है की समय चलायमान है वह निरंतर चलता रहता है और जिंदगी की अगर 'स्थापना' हुई

सबका मालिक एक है !

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सबका मालिक एक है ! जब सबका मालिक एक है तो उसके पास सबको तोलने लिए अलग अलग तराज़ू क्यों, जब मालिक एक है तो हमेशा सबको एक सा फल क्यों नहीं मिलता, मालिक....हमेशा सबके साथ एक सा सलूक क्यों नहीं करता यह शिकायत हम सबकी अपने मालिक से है पर मालिक तो एक है पर क्या हम सभी के कर्म एक से  हैं ! जैसा बीज होगा फसल भी वैसी ही होगी चाहे जमीन एक ही क्यों न हो एक ही जमीन पर गेहूं भी लगता है उसी जमीन पर चावल भी, गन्ना भी और उसी जमीन पर कैक्टस भी यानी ज़मीन एक पर फसलें अलग-अलग मतलब मालिक एक पर  सबके  फल उनके कर्मों के हिसाब से उन्हें मिलते कुछ कम न कुछ ज्यादा, जो तेरा है न वो मेरा है और जो मेरा है न वो तेरा है बस कर्मों के फल यूँ ही मिलते रहेंगें चाहे मालिक एक ही क्यों न हो ! इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करिए और जैसी फसल चाहिए वैसे बीज बोते रहिये, जिस दिन हम सभी के कर्म अच्छे होंगें, मालिक एक सा  ही लगेगा !