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Showing posts from December, 2019

"जाते हुए से सीखना और सीखाते हुए को जाने देना"

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जी हाँ, जो 'जा' रहा है याद रखना हमेशा वो कुछ 'सीखा' रहा है, और जो 'सीखा' रहा है याद रखना की वो हमेशा के लिए 'जा' रहा है ! जी हाँ 'वक़्त' भी और 'इन्सान' भी....., वक़्त वक़्त हमेशा चलायमान है और निरंतर चलता रहता है, जाता हुआ वक़्त हमेशा हमें कुछ सीख देकर या सीखाकर ही जाता है, हर जाते हुए वक़्त से-बीत गए वक़्त से हमें  सबक सीखना चाहिए, बीते हुए वक्त में हुई अपनी गलतियों से सबक लेना चाहिए, अपनी जाने-अनजाने की गई भूलों से सबक लेना चाहिए ताकि आने वाले वक्त में वो भूल - वो गलतियां हमसे न हों, जाता हुआ वक्त हमें बहुत कुछ कह कर, बहुत कुछ सीखा कर जाता है, यह हम पर है की हम उन सबकों को स्वीकार करें न की नजरअंदाज करें, अगर हम उन्हें स्वीकार लेंगें तो यह तय है की आने वाला हमारा वक्त बहुत ही मंगलमय और अच्छा होगा और अगर हम उन्हें नजरअंदाज कर देंगें तो फिर आनेवाला वक्त भी बीते हुए वक्त की तरह ही बीत जाएगा हमें सीखाते-सीखाते और जीवन भर हम सीखने और गलतियों को दोहराने की प्रक्रिया से बाहर कभी नहीं निकल पायेंगें,  इसलिए  जो समय जा रहा जाते-जाते वह हम

डूबने के लिए अगर पानी की जरुरत होती तो सूरज कभी नहीं डूबता !

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अगर कभी कोई विचार आपको परेशान करें तो उसके आगे कभी समर्पण नहीं करना,  बल्कि उन विचारों को अर्पण कर देना उन्हीं को जहां से उनकी उत्पति हुई है !  डूबने के लिए अगर पानी की जरुरत होती तो सूरज कभी नहीं डूबता,  सूरज हर रोज डूबता है, बिन पानी के भी...., यही जीवन है, जिसमें कभी उतार है तो कभी चढ़ाव हैं, और जहां कोई तर गया पानी में भी और कोई डूब गया बिन पानी के भी ! जिंदगी बेहतर बनाने के जूनून में , 'बद' से 'बदतर' हो गई, काश, जैसी थी बेहतर थी, 'हीरों' की तलाश में,  'मोतियों' सी जिंदगी भी 'पत्थर' हो गई ! अति की तलाश में अति हो गई, वो वीर था पर उसकी तलाश में ही उसकी वीरगति हो गई, 'जरा' से में भी सुकून था, न समझ सका वो......और जो न समझा तो दुर्गति हो गई ! अपने सारे 'बंधन खोल दो', मुक्त हों.....उन्मुक्त हों ! 

जिंदगी सबसे हसीन तब होती है - जब न कुछ पाने की चाहत हो न कुछ खोने का गम !

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ऊंचाई पर चढ़ते वक्त साँस चढ़ती है और ऊंचाई पर पहुँच कर आक्सीजन की कमी होने के कारण  साँस लेने में दिक्कत भी महसूस होती है और हम सबसे आरामदायक तब होते हैं जब हम चोटी से नीचे की तरफ उतर रहे होते हैं, यही वह समय होता है जब हमारी सांसें एकदम साधारण चल रही होती हैं  ! लेकिन हम सब ऊंचाइयों पर चढ़ने और चोटी पर कायम रहने के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा देतें हैं, अपनी साँसों की कीमत पर चोटी पाने की चाहत, अपने सुख की कीमत पर चोटी पाने की चाहत...... क्यों  हम  चोटी से नीचे उतरने के सुकून को अपनाना नहीं चाहते, आखिर क्यों....! क्यों हम अपनी साँसों को साधारण तरीके से चलाना नहीं चाहते , हम क्यों शर्मिन्दा महसूस करते हैं उतरने में, नीचे आने में , क्यों हम उतरने को भी उतने सम्मान के साथ अपनाते जितना की ऊपर  चढ़ने को! क्यों हम  जीवन को दांव पर लगा  कर वह सब कुछ पाना चाहतें हैं, जो की सिर्फ एक  मिथ्य है - क्षणिक है, जो सदा के लिए आपके पास रहने नहीं वाला, वो मुकाम, वो चोटी, वो ऊंचाइयां जब एक दिन उतरना तय है तो क्यों न हम साधारण विचार और जीवन को अपनाएं न की उसको जटिल बनाएं ! चोटी पर चढ़ने औ

रिश्तों को शरीर के मध्य भाग से निभाएं, न की ऊपरी भाग से !

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रिश्ते निभाने हैं तो दिल से निभाइए, न कि दिमाग से......! दिमाग से निभाए गए रिश्ते ताश के पत्तों  महल की तरह होते हैं और वह ज़्यादा देर या दिन तक कायम नहीं रहते  वह जरा सी हवा में धड़-धड़ा कर गिर जातें हैं, इसलिए सदा रिश्तों को दिल से निभाएं जहाँ दिमाग का इस्तेमाल कम से कम हो, हमेशा याद रखियेगा की जहाँ दिल से दिल के तार जुड़ते हैं वहां से  हमेशा मधुर धुन और स्वर ही निकलते हैं और जहाँ दिल की जगह दिमाग के ढोलक बजते हैं वह बेसुरी धुन और स्वर ही पैदा करते हैं ! रिश्तों में बदले की भावना की जगह बिलकुल नहीं होनी चाहिए, क्योंकि बदले की आग से आप जब भी किसी को  जलाना चहाएंगें तो उस आग की  चिंगारी का आप पर भी पड़ना तय है, ठीक उस मोमबत्ती की बाती की तरह जो मोम को जलाने और पिघलाने के चक्कर में अपने आप को पूरी तरह जला डालती है और अपने को पूरी तरह ख़त्म कर लेती है, और अंत में न मोम बचता है और न ही बाती, ऐसी बदले की भावना को रिश्तों में बिल्कुल भी जगह नहीं देनी चाहिए और इससे बचना चाहिए ! इसलिए रिश्तों को शरीर के मध्य भाग से निभाएं न की ऊपरी भाग से, यानी दिल से न की दिमाग से !

दीमक अगर जड़ों को खोखला कर रहा है तो सिर्फ डाली काटने और पत्ते छाँटनें से कुछ नहीं होगा !

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गाँव में एक बुजुर्ग व्यक्ति अपने आँगन में बैठे थे , तभी चार दोस्त वहाँ से गुजरे, बुजुर्ग व्यक्ति ने उनको पुकारा और उन्हें बताया कि उनके आँगन में जो बड़ा आम   का पेड़ है उसमें बहुत समय से   दीमक लग गया है और अगर आप चारों मित्र मेरी मदद कर दें तो यह पेड़ बच जाएगा और इसमें जो फल लगेंगें वह भी   काम आयेंगें !   चारों दोस्तों ने एक दूसरे को देखा और बुजुर्ग पर मुस्कुराये बोले- बस इतनी छोटी सी बात यह तो हमारे बाएँ हाथ का खेल है , हमें एक दिन दो, हम चारों कल आपके पास आते हैं , आप निश्चिंत रहें आपका आम  का  पेड़ हम पूरी तरह दीमक से मुक्त कर देंगें , पेड़ भी आपका और आम भी आपके  ! चारों दोस्त यह कहा कर   अपने घर को चले गए और बुजुर्ग भी अपने घर निश्चिंत हो कर सो गए की कल चलो मेरे प्रिये आम के   वृक्ष को दीमक से मुक्ति मिल जायगी !   अगली सुबह जब बुजुर्ग उठे तो थोड़ी ही देर में चारो दोस्त भी उनके घर आ पहुंचें ,  किसी के हाथ में कुल्हाड़ी थी , किसी के हाथ में दराती , बुजुर्ग थोड़ा चिंतित हुए   उन्होंने चारों से पूछा- मेरा काम जो मैनें तुम्हें बताया था वह   पक्का हो तो जाएगा न...थोड़ी शं

जीवन में हमेशा सकारत्मक बनिए, नकारात्मकता के बुलबुले स्वतः ही शांत हो जायेंगें !

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सकारात्मक व्यक्ति रुक सकता है, धीमा हो सकता है, किन्तु दुनिया की कोई भी ताकत उसको ज्यादा देर तक रोके नहीं रख सकती, उसे बहुत देर तक उसे धीमा नहीं कर सकती, रुकावटें उसके लिए पानी के वह बुलबुले हैं जो क्षण भंगुर हैं जो क्षण भर के लिए हैं और उसे पता है कि उसकी ऊर्जा बुलबुलों को शांत करने के लिए पर्याप्त है ! पानी में उतरेंगें तो जल हमेशा शांत ही हो  ऐसा जरुरी नहीं है, नकारात्मक लोग-नकारात्मक बुलबुले के सामान, बीच-बीच में आपकी रफ़्तार को रोकना चाहेंगें, आपकी दिशा बदलना चाहेंगें लेकिन उन बुल-बुलों को नजरअंदाज कर दें उनको अपने हाल पर छोड़ दें, उनका देर-सवेर आपके रास्ते से शांत होना और उनका गायब होना तय है, हमेशा ध्यान रखना की अपनी ताकत को बुलबुलों के लिए कभी ज़ाया न करना ! जीवन में हमेशा सकारत्मक बनिए और  सदा  अपने काम में ध्यान लगाएं,  नकारात्मक बुलबुले........जी हाँ नकारात्मकता के बुलबुलों को उनके हाल  पर छोड़ दें, वह बुलबुले स्वतः ही शांत हो जायेंगें ! समय-समय पर यह बुलबुले आपके जीवन में आते रहेंगें यह आप पर है की आप इन नकारत्मक बुलबुलों-नकारात्मक लोगों को कितनी तवज्जो देते