किश्तियाँ समंदर में हों तो आगे ही बढ़ना...पीछे की तरफ वापसी ज्यादा लम्बी और कठिन होगी !
किश्तियाँ समंदर में हों तो आगे ही बढ़ना...पीछे की तरफ वापसी ज्यादा लम्बी और कठिन होगी ! आप एक सन्यासी नहीं …… , अपितु एक पारिवारिक व्यक्ति हैं, जिसका भरा-पूरा परिवार है- बच्चे हैं, पत्नी है, माता-पिता हैं, भाई-बहन हैं और आपकी पारिवारिक किश्ती एक बार जब समुन्दर में उतर गई, तो उसको पीछे की और मोड़ने या फिर बीच मंझधार में छोडना आपको कतई भी शोभा नहीं देता ! आपको अब आगे ही बढ़ना ही होगा अपने किनारे को पाने के लिए, अपने अपनों को मंजिल तक पहुँचाने के लिए, सफर के इस दौर का आन्नंद लें, इसमें भाग लें- न की इससे भाग लें ! कुछ न करना जितना कठिन है उससे कहीं आसान है कुछ कर गुजरना, इसलिए कुछ न करने का कठिन प्रयास न करें, धाराओं के विपरीत न चलें, बल्कि धाराओं के साथ चलें या फिर धारों को अपनी तरफ मोड़ने का जज्बा रखें, किनारे जरुर मिलेंगे ! आपकी नजर उतना महत्व नहीं रखती जितना की आपका नजरिया, कहा भी गया है- किश्तियाँ बदलने की जरुरत नहीं, दिशाएँ बदलिए किनारे बदल जायेंगे, नज़ारे बदलने की जरुरत नहीं दोस्त, बल्कि नजरिया बदलिए नज़ारे बदल जायेंगे ! सफर कठिन जरुर होगा, मुश्किल भी