नमन हर माँ को......!


एक खुला आसमान है वो, अपने आँचल पर अनगिनत सितारे लपेटे हुए,
एक अनंत समंदर है वो, अपने अंदर तूफानों को और लहरों को समेटे हुए,
एक सुन्दर मूरत है वो, ममता की मिटटी से बनी जिसके कण-कण में मम्तत्व है -अपनत्व है,
एक दिया है वो औरों को रोशन करती हुई,
वो पतवार है, हर किश्ती की जिसे किनारे की तलाश है,
वो रास्ता है , हर मुसाफिर की जिसे मंजिल की तलाश है,
वो एक सूत्र है हर बिखरे मोतियों को एक धागे में पिरोती हुई,
वो जिसने हमेशा दिया और सिर्फ दिया, अपने दोनों हाथों से दिल खोल कर,
न किसी से कुछ पाने की चाहा, न किसे से कोई उम्मीद,
जीवन के कड़वे घूटों को पिया उसने, और अपने होठों को सदा सिया उसने,

हाँ,  माँ  है वो...... , 
उसने अपने जीवन सफर में क्या हासिल किया इस पर गौर करना,
अपने बेशकीमती समय से क्या रत्ती भर समय क्या दिया उसको, इस पर गौर करना ,
क्या पाया उसने और क्या गवायाँ  उसने....... ?
उसका कर्ज, जो शायद सात जन्म लेकर भी तुम न चूका सको,
पर एक कोशिश तो करना की उसका रत्ती-माशा तो इस जीवन में ही चुकता हो जाए !

नमन हर माँ को......!
  

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