'स्थापना' और 'विसर्जन'!
वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा ॥
हे हाथी के जैसे विशालकाय जिसका तेज सूर्य की सहस्त्र किरणों के समान हैं । बिना विघ्न के मेरा कार्य पूर्ण हो और सदा ही मेरे लिए शुभ हो ऐसी कामना करते है ।
गणपति की स्थापना और फिर उसका विसर्जन.....।
धार्मिक ग्रंथो के अनुशार जब वेदव्यास जी ने महाभारत की कथा भगवन गणेश जी को दस दिनों तक सुनाई थी तब उन्होंने अपने नेत्र बंद कर लिए थे ! और जब दस दिन बाद आँखे खोली तो पाया की भगवान् गणेश जी का तापमान बहुत अधिक हो गया था।
फिर उसी समय वेदव्यास जी निकट स्थित कुंड में स्नान करवाया था ! जिससे उनके शरीर का तापमान कम हुआ ! इसलिए गणपति स्थापना के अगले दस दिन तक गणेश जी की पूजा की जाती है ! और फिर ग्यारहवे भगवान् गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है।
गणेश विसर्जन इस बात का भी प्रतीक है-की यह शरीर मिटटी का बना है.और अंत में मिटटी में ही मिल जाना है।
गणपति की स्थापना और फिर उसका विसर्जन.....हमें यह बताता है की समय चलायमान है वह निरंतर चलता रहता है और जिंदगी की अगर 'स्थापना' हुई है तो उसका 'विसर्जन' भी तय है किन्तु इस स्थापना और विसर्जन के बीच का जो आनन्द है, जो मस्ती है, जो उत्सव है उसका अगर आपने भरपूर मजा नहीं लिया, आपने भरपूर आनंद नहीं लिया तो समझ लेना की जिस दिन आप स्थापित हुयें हैं, उसी ही दिन आप का विसर्जन हो गया है ।
इस दस दिन के गणेश उत्सव में जो ऊर्जा हर तरफ, हर किसी में होती है वह इस बात का प्रमाण है वह यह बताती है की जीवन एक उत्सव है और उसे उत्सव की तरह ही जिया जाना चाहिए । हर क्षण, हर परिस्थिति में आनन्द की डोर कभी भी आपके हाथ से नहीं छूटनी चाहिए । अगर स्थापना एक 'उत्सव' है तो विसर्जन को भी एक 'उत्सव' की तरह स्वीकार करना चाहिए।
जिंदगी की स्थापना का उत्सव सबसे बड़ा उत्सव है, अगर आपको इस उत्सव को मनाने का मौका ईश्वर ने दिया आपको दिया है तो इसको उत्सव की तरह मनाएं, जिंदगी के हर क्षण का, हर परिस्थियियों का आन्नद लीजिये।
सफर स्थापना और विसर्जन के बीच का बहुत आनंदमय है इससे पहले की विसर्जन हो, अर्जन करिये अपने लिए एक सम्मान, एक नाम, एक मुकाम......।
वाकई जीवन की स्थापना को महत्व दें, उसका सम्मान करें और विसर्जन से कतई डरें नहीं ।
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