हर क्षण एक उत्सव है, कटनें और काटने....बटनें और बाँटने से बचें, यही जीवन है !
मकर-संक्रांति......एक उत्सव !
हम दान पुण्य करेंगे.....पतंग उड़ाएँगे,
जीवन एक उत्सव है उसके हर पल को सेलिब्रेट करें....उत्सवों का इन्तजार न करें, हर क्षण को एक उत्सव की तरह जिएं जियें और मनाएं !
हम दान पुण्य करेंगे.....पतंग उड़ाएँगे,
जीवन भी एक पतंग की तरह है जिसकी डोर भगवान ने अपने हाथ में रखी है ! जब हम ज्यादा हवा में , अपनी जमीं को भूल .... अपनों को भूल, अपनी डोर....... अपने को उत्पन्न करने वाले-अपनी उत्पति को भूल, आगे और भटकने का, कटने और काटने का प्रयास करते हैं, तो वह हमारी डोर को लपेटना शुरू कर देता है....हमें हमारी जमीं की तरफ, हमें हमारी उत्पति की तरफ, हमें अपने-अपनों की तरफ......लाना शुरू कर देता है!
यही सत्य है और यही सुन्दर भी.....!
जीवन में मैनें क्या पाया है उससे ज्यादा जरुरी है की उसको पाने के सफर में मैंने क्या खोया है, मैनें अपनी उड़ान, अपनी मंजिल को पाने के सफर में कितनो को काटा है, कितनों को बांटा है !
बढिये-चढ़िये, लेकिन किसी को सीढ़ी बना कर नहीं, किसी के अरमानों को दबा कर नहीं, अपने कदम.....अपना सफ़र, अपनी उड़ान, अपनी मंजिल खुद तय करें और उस सफ़र में अपने उत्पति यानि की अपने माता-पिता को, अपने सफ़र के हमसफ़र को, अपने-अपनों को सम्मान दें !
सफ़र करिए.....जरूर करिए, लेकिन ध्यान रहे की उस सफर में आपके पैर जमीं पर और आप आसमां पर हों, यही सफ़र की और मंजिल की सफलता का आनन्द है..... सदा अपने जीवन का रिमोट अपने पास रखिए, किसी औरों के हाथों में नहीं..... अपने जीवन की डोर और उसकी चकरी सिर्फ उस हाथ में दें जिसे परम ईश्वर कहा गया है और निश्चिंत हो जाएं !
जो हमें दे रहा है और जिससे हमे पाना है वो कही दूर....बहुत दूर हमारे निःस्वार्थ कर्म को देख रहा है....सूंदर सा, मुस्कुराता हुआ, तुम्हे उससे कहीं ज्यादा देने के लिए, जिसकी शायद तुमने कभी उम्मीद भी नहीं की होगी.....तुम्हारी सोच, तुम्हारी अपेक्षाओं से बहुत ऊपर, वही एकमात्र तुम्हारा जज है और होना भी चाहिए, वो कोई और नहीं वह ईश्वर है, सर्वेश्वर है....!
कटनें और काटने.....बटनें और बाँटने से बचें, यही जीवन है !
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