परछाइयाँ साथ न देंगी, पर अच्छाइयाँ अटल हैं - जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी...!
दो चीजें जीवन भर आपके साथ चलेंगी - एक आप की परछाई, और दूसरा आपकी अच्छाई ....!
दोनों आपका ही स्वरुप हैं.........पर दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है !
पहले बात करते हैं परछाई की.........
यह हमारा वह स्वरूप है जो कि समय के अनुसार, दिशा -दशा के अनुसार, बाहरी प्रभाव से जैसे- सूर्य की दिशा, बादलों की उपस्थिति, समय आदि के अनुसार बदलता रहता है !
यह असल में हमारे जीवन का वो रूप है जिसमें हमारे अंदर के निहित गुण, values जाने-अनजाने किसी बाहरी व्यक्ति..........परिस्थति से प्रभावित होते हैं और जिसका परिणाम, हम अपने core को, अपने अंदर के निहित गुणों को छोड़, अपनी सही दिशा और गति को भूल दूसरी दिशा की तरफ मुड़ जाते हैं .......और यही से हम अपने हाथ से, अपने जीवन की डोर किसी और को समर्पित कर देतें हैं !
आपका विवेक, आपकी बुद्धि सब धरा रहा जाता है और हमेशा किसी प्रभाव का या अभाव का असर हमारे हर काम में झलकता रहता है.....ध्यान रहे न किसी के प्रभाव में जिएं न किसी अभाव में जिएं ..... यही जीवन की सफलता का मूल मंत्र है !
परछाईआं आपके साथ चलती हैं, पर बाहरी परिस्थितियां इसकी दिशा और दशा दोनों को प्रभावित कर रहीं हैं जिस पर आपका कोई भी नियंत्रण नहीं है और जो आपके न चाहते हुए भी बाहरी तत्व के अनुसार बदल रही है..... वह है हमारी परछाई !
अब बात करें...... अच्छाई की !
यह आपका बाहरी स्वरुप नहीं है यह आपका आतंरिक स्वरुप है.....आपकी अच्छाई आपका वो गुण है जो आपके साथ आज भी है, और अापके जाने के बाद कल भी रहेगा, अपनी अच्छाई को तब भी कायम रखिये, जब आपके आस पास की परिस्थितियां और व्यक्ति आपके अनुकूल न भी हों !
यह हमारे जीवन का वह स्वरुप है जिसके कारण हम जाने जाते हैं, पहचाने जातें हैं, यही गुण हमें जीवन की दौड़ में कायम रखता है, आपकी अच्छाइयां ही है जिसके कारण लोग आपके साथ हैं और आपसे जुड़ना चाहतें हैं !
हमारी अच्छाइयां, हमारे संस्कार ऐसे होने चाहियें की जो हर समय, हर हाल में कायम रहें, अपनी अच्छाइयों को अपनी ताक़त बनाइये, पूरी पवित्रता और ज़िम्मेदारी के साथ अपने कर्म करें और लोगों के साथ अच्छे रहे और अपनी अच्छाइयाँ उनको बाँटे, आपकी एकमात्र पूंजी जो आप अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को दे सकते हैं वह है आपकी अच्छाई, आपके संस्कार !
यही वह तत्व है जो आपको औरों से अलग करता है, आगे बढिये ....... और अपनी अच्छाई को बाहरी परिस्थितयों, अपने आस-पास के वातावरण से प्रभावित न होने दें, अपनी परछाई की तरह !
परछाइयाँ साथ न देंगी- पर अच्छाइयाँ अटल हैं, एक मजबूत स्तंभ की तरह....,
जिंदगी के साथ भी, और जिंदगी के बाद भी....!
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