जब गुरूर...... का 'र' हटता है, तब गुरु का जन्म होता है !


गुरु कौन  है ?......... जब गुरूर...... का 'र'  हटता है, तब गुरु का जन्म  होता है,

और जब उसके अंदर का अहम.......हम में  तब्दील होता है, तब गुरु परम....... चरम पर होता है !

गुरु सिर्फ वह नहीं है जिसने किताबी ज्ञान प्राप्त किया है या कोई डिग्री हासिल की हो ! गुरु एक ऐसा तत्व है जो आपके अंदर से पैदा होता है और उसका प्रतिबिम्ब बाहर झलकता है! गुरु के उम्र की कोई परिभाषा नहीं है ...... वह कोई भी हो सकता है एक उम्रदराज भी....और एक बालक भी, गुरु वो है जो हमें कही भी, कभी भी कुछ न  कुछ सीखा जाये!

जिसकी बातें आपके अंदर तक जाएं और आपको यह अहसास कराएं की अभी मेरे अंदर कुछ कसर बाकि है.....उसकी बातें  सही रास्ता दिखाएं ! जब हम कहतें हैं  की बच्चों की तरह मुस्कुराएं , तो वह बालक हमारा गुरु हुआ जो हमें बताता है की वर्तमान में जियो..... बेफिक्र हो कर  जियो....कल की चिंता से मुक्त हो...उन्मुक्त हो कर जियो......न कोई उसमे गुरुर, न किसी से उसकी दौड़ , न उसमें कोई अहम........न उसको कोई वहम !

आज  हर कोई गुरु बनना चाहता है , लेकिन पहले जरुरी है कि हम अपने अंदर गुरु-तत्व को विकसित करें....... गुरु-तत्व कुछ और नहीं बल्कि वह गुरुत्व का बल  है जो औरों को आपके पास खींचता है, आपके नजदीक लाता है! जिसके कारण लोग आपसे कुछ पाना चाहतें  हैं, आपका अनुसरण करना चाहतें हैं. ........ जिसने यही गुरुत्व बल यानि गुरु-तत्व को पा लिया, अपने गुरुर के र को पी लिया, समझ लेना उसने गुरु ...... का जीवन जी लिया !

आपकी वाणी में मिठास हो, आपके कर्म आपके शब्दों को परिभाषित करें......

''चेहरे पर न शिकन हो, और गैरों से भी अपनत्व हो........रत्ती भर न गुरुर हो, सर्वोपरि गुरु-तत्व हो'' !

यही गुरु की परिभाषा है !

जय गुरुदेव !






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