तुमसे बड़ा कौन.......तुम्हारा मौन !
मौन की गूँज ......... बहुत दूर तक और देर तक रहती है !
जब भी आपको लगे कि परिस्थितियां, समय, लोग आपके साथ नहीं हैं.........तो बस एक छोटा सा, पर बहुत बड़ा काम करना- मौन हो जाना, बाहर से भी और अपने भीतर से भी !
आप जो बोल कर हासिल नहीं कर सकते, मेरा दावा है कि उसको आप अपने मौन से हासिल कर सकतें हैं , एक बार आप इसको अजमाकर देखिये, आप पाएंगे कि ज्यादा बोलने वाले लोग अक्सर नुकसान में रहतें हैं, आप ज्यादा बोल कर न सिर्फ अपनी ऊर्जा कम कर रहें हैं बल्कि अपने दुश्मनों की संख्या का विस्तार भी कर रहे हैं !
उतना बोलिये जिससे कि आप अपनी बात, अपना पक्ष मजबुती के साथ रख सकें, व्यर्थ की चर्चाओं से बचें, बहस का कोई अंत नहीं है, वह अनंन्त है........ उसमें न पड़ें और उससे समय रहते अपने को अलग कर लें , यह सूत्र जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है चाहे वो परिवार हो या बाहर हो !
कहा भी गया है 'एक चुप सौ सुख',
पर में कहता हूँ- "तुमसे बड़ा कौन......... तुम्हारा मौन "!
जब किसी बहस में आप मौन हो जातें हैं तो - बहस छोटी और आपका कद बड़ा हो जाता है,
किसी भी चीज़ को हासिल करने का सबसे सरल उपाय है कि आप अपनी आंखें और दिमाग खुला और मुंह बंद रखें !
आपके शब्द और आप बेशकीमती हैं- अपनी राय, अपने विचार, अपने आपको सस्ते में न बेचें, जितनी जरुरत हो, जब जरूरत हो तब ही इनका इस्तेमाल करें ! जरुरी नहीं है की हर कोई इसका कदरदान हो, पर इनका कदरदान, इनकी कीमत लगाने वाला जरूर मिलेगा, सही समय का इन्तजार करें !
मौन और मन दोनों की ताक़त का इस्तेमाल करें, दोनों को अपने जीवन में अहम स्थान दें,
मन शांत होगा तो- मौन की गूँज बहुत दूर तक जाएगी और बहुत देर तक रहेगी..... !
ध्यान रखना - तुमसे बड़ा कौन.......तुम्हारा मौन !
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