बिना सांसों के अहसास के,आपका शरीर एक कोरी किताब है...जिसे कोई नहीं पढ़ना चाहेगा शायद आप खुद भी नहीं !


अपने शरीर को सम्मान जरुर दें, यह भगवान का दिया गया आपको सुन्दर और बेशकीमती उपहार है !

लेकिन इस उपहार, इस खिलौने कि चाबी, यानि अपनी सांसों को भी उतना ही सम्मान दें.......और सिर्फ सम्मान ही नहीं समय भी दें !

हमारा सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ भौतिक चीजों पर होता है जैसे सिर्फ अपने शरीर पर.....हाथ काम कर रहें  हैं  या नहीं, पैर चल रहे हैं या नहीं, पीठ या गर्दन में दर्द है या नहीं !

रुकिए, बस यही रुकिए, बस भी कीजिए क्योकि शरीर आपकी मात्र एक भौतिक सम्पदा है, अपने जीवन में अपनी अध्यात्मिक सम्पदा को सर्वोपरि स्थान दें, और वह है आपकी सांसें, आपके कर्म, आपके संस्कार, आपका व्यवहार.....जी हाँ जरा इन पर भी गौर करें और इनको जीवन में सर्वोपरि स्थान दें !

अपनी अति-व्यस्त  दिनचर्या से समय निकालें और अपनी सांसों पर ध्यान दें, अपनी सांसों को भी समय दें ! 

हम में से ज्यादातर लोग सिर्फ जी रहें हैं, बस सांसे चल रही हैं इतना भर ही है......जनाब अपनी सांसों पर एक बार गौर तो करो, अंदर जाती............बाहर आती परम आनंद कि अनुभूति होगी, भाग-दौड़ कि जिंदगी में ऐसा न हो कि सांसें निकल जाएँ और पता भी न चले कि शरीर में सांसें भी थी !

मात्र अगर शरीर है, और आपकी आतंरिक-अध्यात्मिक सम्पदा शून्य है तो यह तय है कि आप सिर्फ जी रहें हैं.....आप किसी और वन में भटक रहे हैं, जी-वन में  तो कतई भी नहीं  !

आप एक उस किताब कि तरह हैं, जिसके पन्ने खाली हैं बिना अक्षरों के….,
जिसे कोई नहीं पढ़ना चाहेगा शायद आप खुद भी नहीं, 
उसी तरह बिना सांसों के अहसास के, आपका शरीर भी एक कोरी किताब है.....!

जिंदगी बहुत छोटी है दोस्तों, समय लौट कर नहीं आता इस सफर में जो छूट गया, जो रूठ गया वो कभी वापिस नहीं आएगा, अपनी बाहरी शक्तियों के साथ-साथ आतंरिक शक्तियों का इस्तेमाल सही दिशा में करें, और उन्हें सम्मान दें.....भाग-दौड़ भरी इस जिंदगी कि रफ़्तार को कम करें और अपना कीमती समय, अपने लिए निकालें !

शरीर है, सांसें है........ पर अहसास नहीं,
रिश्ते हैं, नाते हैं.......फिर भी कोई पास नहीं,
बातें हैं, वाणी है........पर शब्दों में मिठास नहीं,
समंदर है जिंदगी.....प्रचुर है पानी इसमें, 
बुझती फिर भी प्यास नहीं.....!


  

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