मन बहुत ही चंचल है इसे बांधें रखें, अपने काबू में रखें..और अपने बाकी बंधन खोल दें !
जिस तरह घोड़े को लगाम की जरुरत है, सही समय पर उसको
काबू में रखना जरुरी है ताकि सवार या सवारी अपनी मंजिल तक सकुशल पहुँच सके, उसी तरह अपने मन
को भी लगाम लगाना बेहद जरुरी है ताकि बेकार की बातें, और ख्यालात हमारे मन को विचलित
या परेशान न कर सकें क्योंकि मन के अंदर की हलचल, हमें, हमारे शरीर को कभी शांत
नहीं रहने देगी, जिसके कारण न हम मन से न तन से काम कर पायेंगें और मंजिल से बहुत दूर होते चले जाएंगे !
मन बहुत ही चंचल है, इसे बांधें रखें, अपने काबू
में रखें....,
और अपने बाकी बंधन खोल दें !
और अपने बाकी बंधन खोल दें !
इसके साथ ही समय-समय पर अपने मन को हल्का और
खाली करते रहिए ऐसा न हो की मन का घड़ा भर जाए और हमारी भावनाएं उससे छलकने लगें, और
वो हमारे काबू में न रहें और हमारे साथ-साथ दूसरों को भी प्रभावित करें, और उससे
भी बुरी स्थिति तब हो सकती है जब हम अपनी भावनाओं को मन के घड़े में कैद कर लें, उनको
बाँध लें, तो एक दिन मन के घड़े में विस्फोट होना निश्चित है, मन का घड़ा एक दिन
फूटेगा जरुर और जो वो फूटा तो न मन बचेगा और न ही तन !
यानी कुल मिलकर अपने मन के घोड़े और मन के घड़े का ध्यान रखिये !
यानी कुल मिलकर अपने मन के घोड़े और मन के घड़े का ध्यान रखिये !
आपने देखा होगा की जब कभी भी हमारा मन परेशान
होता है, तो उसका सीधा-सीधा असर हमारे शरीर पर भी पड़ता है, हमारे शरीर का रिमोट
हमारा मन है इसलिए उस रिमोट का हमें सही तरह से इस्तेमाल करने की जरुरत है, और यह
पूरी तरह से आप पर निर्भर करता है, क्योंकि यह आपके ही हाथ में है, अच्छा यही होगा की उस रिमोट से हम सिर्फ सकारात्मक चैनल
ही देखें, अपने को जो स्वस्थ रखना है तो सबसे पहले अपने मन को स्वस्थ रखें, मन
को शांत रखें, मन को अपने काबू में रखें !
कहा
भी गया है- मन चंगा तो कठौती में गंगा,
मैं कहता हूँ- जो हो मन प्रसन्न, तो न होंगीं आँखें नम.....मिलेंगी जीत ज्यादा
और हार कम !
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