मुस्कुराइए तब भी जब......आपका दर्द, आपका दुःख चरम पर हो !


मुस्कुराइए तब भी जब......आपका दर्द, आपका दुःख चरम पर हो !

क्योंकि जो उस समय में भी तुमने अपनी मुस्कान कायम रखी तो यह तो तय है कि हवा के झोंकें, तूफानों कि लहरें तुम्हारी कश्ती कि रफ़्तार कम तो जर्रूर कर सकती हैं पर किश्तियाँ डुबो कभी भी नहीं सकती !

दुःख किसे नहीं है, किसी के जाने का , कभी कुछ न पाने का.......पर इनके बीच में से होकर ही आपको निकलना होगा, इसके बाजु से होकर कोई रास्ता नहीं निकलता .....जब में कहता हूँ मुस्कुराएं तब भी जब आप दुःख में हों, तो इसका मतलब है आपको धारा के विपरीत जाकर एक छोटा सा पर बहुत बड़ा प्रयास करना होगा- चहेरे पर मुस्कान लानी होगी, न चाहते हुए भी जो कि शायद एक कठिन काम है पर करना होगा, बाहर से भी मुस्कुराना होगा......अपने भीतर कि मुस्कराहट को जिन्दा रखने के लिए !

दुःख बड़ा या दर्द बड़ा......
लेकिन फिर भी मैं अटल खड़ा,
इंतजार में हैं मेरे अपने और घोसले...... , 
तो कायम रखने होंगे होंसले,
बिखरते नहीं हैं सपनो के पंख जिनके, देखो उड़ रहा वही परिंदा है,
मिट जायेंगे दर्द सारे, जब तक मुस्कराहट जिन्दा है !
  
आपकी मुस्कराहट कठिन समय में आपको ही नहीं आपसे जो भी जुड़े हुए हैं उनको उस समय का, उस कठिन परिस्थिति का मुकाबला करने कि ताकत देती है ! परिस्थितियाँ और लोग आपकी पसंद के हों ऐसा जरुरी नहीं तो फिर क्यों न उनका सामना मुस्कुराते हुए किया जाए और परिस्थिति बदलने का इन्तजार किया जाए ! रात होती है......तो हमें यह मालूम है कि दिन भी चढ़ेगा, उसी तरह खराब परिस्थिति है तो परिस्थिति अच्छी भी होगी यह विश्वाश भी हमें रखना होगा !

याद करो ठीक उससे पहले कि परिस्थिति जब स्थितियां बिगड़ी होंगी....गौर से याद करोगे तो पाओगे कि उससे पहले कि स्थितियां बिलकुल सामान्य थी...सुंदर थी...आप ऊँचाइयों पर थे बस अब इतना है कि इस समय आप नीचे उतर रहें हैं आपकी मंजिल नीचे आपका इन्तजार कर रही है, आप हार नहीं रहे हैं और न ही आप हार मानें, अपना सफर जारी रखना क्योंकि सफर के कांटों से जिसने हार मान ली, मुस्काना छोड़ दिया वो कभी मंजिल तक नहीं पहुँच पायेगा..........कभी भी नहीं !

जितना ज्यादा दर्द गहरा हो...... उससे ज्यादा मुस्कुराहटों का पहरा हो !

अपनी मुस्कराहट को अपनी ताक़त बनाएं.....और खुल कर जियें.... खुल कर मुस्कुराएं !

आजाद पंछी की तरह उड़ें..... और अपने बंधन खोल दो !


मुक्त हों....उन्मुक्त हों !


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