ध्यान करिए नही, ध्यान रखिए.......ध्यान अपना और अपनों का !

ध्यान.......यानी, आराम से  सुखासन में बैठ जाएँ, अपनी आँखें बंद कर लें, हथेली घुटनों पर, आसमान की तरफ खुली......गहरी सांस अंदर और मौन के साथ चेहरे पर मुस्कान.....!

पर सांसारिक जीवन में मैं कहता हूँ ध्यान इससे कही  ऊपर जाकर है और ध्यान की परिभाषा है -

उठिये कर्म की तरफ बढ़िए, कर्म  करेंगे तो सुख भी आएगा और आसन भी, यह दोनों आपके पास होंगें, अपनी आँखें खोलिये अपनी जिम्मेदारी की तरफ बढ़िए, हथेली आपकी-आपके अपनों के क़दमों के तले हो अपने माता-पिता के, अपनी धर्मपत्नी के  और अपने बच्चों के तले  ताकि उनकी राह में आने वाली मुश्किलों के कांटें उनको न चुभ सकें,  उनकी राह आसान करते चलें और सही समय पर सही शब्दों के साथ, अपना पक्ष रखें अपने आपको सही तरीके से present करें, अपनी क़ीमत खुद आंकें , खुद लगाएं अपने आपको सस्ते में कभी न बेचें आप अनमोल हैं !

न चेहरे पर शिकन हो,  न कुछ खोने का गम हो,
बस प्रार्थना यही अपने और अपनों के काम आ सकुँ, जब तक मुझमें दम हो !

ध्यान.....रखिए अपने तन का, अपने मन का, अपने स्वास्थय का, अपनी सांसों का, अपनी वाणी का, अपनी जिम्मेदारी का, अपने रिश्तों का, अपने रास्तों का और अपनी मंजिल का...साथ-साथ ध्यान रहे अपनों का ! और जब यह ध्यान पूर्णता से किया जाता है, निस्वार्थ किया जाता है तो परम शांति और आनन्द मिलता है, यही सच्चा ध्यान है  ! 

इसको एक बार आप करके तो देखिये, यह आपको भी प्रसन्ता और सुकून देगा और आपसे जुड़े हुए रिश्तों को भी मुस्कान देगा ! क्योंकि वह निश्चिंत होंगे की कोई है इस ईश्वर के आलावा भी जो उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचाएगा, उनके दुख का हिस्सेदार होगा, और जब कभी वह गिरने लगेंगे तो अपना हाथ आगे बड़ा कर उन्हें उठाएगा.....यानि हमारा “ध्यान” रखेगा, यही ध्यान की परभाषा है !

आँखें सदा आपकी खुली रहे , ताकि आप देख सकें की क्या अच्छा है - और क्या बुरा है, कौन अपना है-कौन पराया है, हाथ आपके खुलें हों ताकि आप गले लगा सकें अपनों को और अपना सकें गैरों को, छोड़ पत्थर उठा सकें हीरों को, बढ़ा सकें हाथ उनको उठाने के लिए और उन्हें मंजिल तक पहुँचाने के लिए, हो मुस्कान चेहरे पर लोगों को अपना बनाने के लिए, मौन मुख पर और वाणी में सयंम हो, न दुखाए  वो दिल किसी का और उनमें भीतर से अपनापन हो ! 

यही इस जीवन चक्र का परम ध्यान है.....!

कर्म है सर्वोपरि जिनका.....पा लेतें हैं वो मुकाम,
सामना करिए तूफ़ानों का......पलायन नहीं,
गिर जातें हैं वह,  जिनका मजबूत मौन और मन नहीं !

मन शांत होचेहरे पर मुस्कान हो, और जिस समय जो काम आप कर रहें हों उनमें जो कठिनाइयाँ हों उनका समाधान शांत-चित्त से निकाला जाए, और परिस्थितियाँ चाहे आपके अनुकूल न भी हों.....पर उस क्षण में जो बेहतर समाधान हो सके करें, जरुरी नहीं है की वह सौ प्रतिशत सही हो लेकिन....यह तय है की वह सौ प्रतिशत की तरफ आपका पहला कदम होगा...!




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