मेरे अंदर से आवाज़ निकलनी चाहिए......सफाई बाहर ही नहीं, भीतर भी चलनी चाहिए !
स्वच्छता के चरण:
१) अपने भीतर की सफाई:
मन की सफाई…...मन
से, भीतर उतर कर......भीतर की सफाई, जो भी मैल मन में हो उसको साफ़ करें…....समय-समय से उसको हटाएँ उसे अधिक दिनों तक न जमने दें ! अपनी आँखों के की मैल को साफ़ करें.....सामने के शीशे को नहीं ताकि आपको चीजें साफ़ दिखाई दें सकें, अपने नजरिये को बदलिए तो बाहर के नज़ारे अपने आप ही
बदले-बदले नजर आयेगें ! जब आपका मन स्वच्छ हो और विवेक काम कर रहा हो तभी यह
समझ आप पैदा कर पायेंगे कि क्या करना है, और क्या नहीं.......क्या सही है, क्या गलत !
स्वच्छता का
यह प्रथम चरण है, किन्तु इस अभियान का और इस महायज्ञ का सबसे मजबूत और बेहद जरुरी
चरण है , इसी चरण की सफलता पर आपकी आगे की सफलता निर्भर करेगी ! इसलिए सबसे
ज्यादा जरुरत इस चरण का ध्यान देने की है.....और वो भी किसी और को नहीं सिर्फ और
सिर्फ आपको, क्योंकि यह चरण सीधे-सीधे आपसे जुड़ा हुआ है !
२) अपने शरीर की सफाई:
यह सफाई
का दुसरा और वह चरण है जो आपके बाहरी स्वरूप को साफ़ करेगा जो आपको ही नहीं औरों को भी दिखेगा, पर यह चरण की अहमियत है, क्योंकि आप भीतर से भले ही ही स्वच्छ है और बाहर नहीं, तो खुद आप को भी आपका यह स्वरूप
पसंद नहीं आएगा, इसलिए जैसे आप भीतर हैं, बाहर भी वैसे ही दिखें और लोगों के लिए मिसाल कायम करें, शरीर होगा साफ़, तो स्वस्थ रहेंगे आप !
३) अपने आस-पास की सफाई:
तीसरे चरण की इस सफाई में आपको यह ध्यान रखना होगा कि आपके द्वारा आपके आस-पास कोई गंदगी न हो, आप
अपने आपको रोकिये और जहाँ-तहाँ अपना कचरा न फैलाएं, न भौतिक रूप से, न ही मानसिक रूप से, कचरे का अपना एक स्थान है हर स्थान को कचरा-पात्र न बनाएं ! अपने कचरे को कम करें, ताकि वातावरण शुद्ध रहे........ और आप से लोग कुछ सीखें, न कि आपको सीखना पड़े की क्या करें और क्या नहीं ! लेकिन अगर आपका प्रथम चरण
मजबूत है तो आपको स्वतः ही यह ज्ञान और भान रहेगा की अपने आस-पास की जगह को कैसे
स्वच्छ रखना है ! अपने साथ-साथ,
अपने आस-पास की सफाई का भी विशेष ध्यान रखें !
४) अपने कार्य-स्थल की सफाई:
सफाई के चौथे चरण में.....आप जहां
है जिस कार्यक्षेत्र में हैं, जहाँ आप काम कर रहें हैं उसको साफ़-सुथरा रखें, और अपने साथ के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें, सफाई सब को पसंद है बस लोगों को
उसका आभास कराने की जरुरत है, उसकी उपयोगिता बताने की जरुरत है, आपके भीतर की सफाई
का प्रथम चरण- यानि मन से सफाई, भीतर की सफाई आपके घर में और आपके कार्यक्षेत्र में प्रतिबिम्बित होनी चाहिए तभी उस चरण कि सार्थकता और सफलता है !
उपरोक्त चार चरण अगर आप अपने मन से पूर्ण कर रहे हैं......तो निश्चिंत
हो जाइए आपका गाँव, आपका क़स्बा या शहर स्वतः ही स्वच्छ व सुंदर दिखेंगे, आपकी तरह......
क्योंकि उपरोक्त चरणों से मिलकर ही आपका शहर या गाँव बनता है, जी हाँ , आपसे और आपके
आस-पास से मिलकर....!
इनके आलावा
कुछ चीजें आप स्वैच्छिक भी कर सकतें हैं जैसे- महीने में एक दिन सिर्फ, मात्र एक
घंटे के लिए किसी ऐसी जगह जाकर श्रम-दान करें, जहाँ आप कभी-कभार ही जातें हों......!
अपनी आंतरिक
और बाहरी स्वच्छता के अभियान का श्रीगणेश आप ही से ही शुरू होगा, इसकी शरुआत के लिए किसी और का या किसी मुहर्त का इंतजार न करें.......आगे बढ़े !

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