होली.....यानि मैं तेरी हो, ली......अपना अहम, अपना दर्द, अपना द्वेष छोड़ तेरी मैं होली !
होली.....यानि
मैं तेरी हो, ली...अपना अहम, अपना दर्द, अपना द्वेष छोड़ तेरा या तेरी मैं हो,
ली....!
कहतें हैं
होली पर सब अपने भेद, मन-मुटाव भूल एक दूसरे को अपनाते हैं, फिर से एक दूसरे के
रंग में रंगतें हैं !
पर इस संसार
में हर क्षण लोग अपना रंग बदल रहें हैं, जब तक तुम उनको समझ पाते हो-उनका रंग बदल चुका होता है, जब आप उनके जीवन में रंग-बिरंगी
खुशियाँ घोल रहे होतें हैं तब वह अपनी सारी ऊर्जा आपके जीवन में जहर घोलने में लगा
रहे होतें हैं....!
जिन्दगी भर
जख्म दो, उनको हरा रखो और उन पर समय समय पर मिर्चें डालो और......लो आई जी होली,
भूल जाओ सब मैंने तुम्हारे साथ या तुमने मेरे साथ क्या किया, मिल जाओ गले, लग जाओ गले......क्यों,
क्योंकि बुरा न मानो होली है !
लो गई
होली.....गले जिनको लगाया.....नापो उनके गले और शुरू हो जाओ अपने उसी काम पर जो
होली से पहले थे......यानि जख्मों को दो, फिर उनको कुरेदो, अच्छी तरह कुरेदो और
डालो उस पर भर-भर के.....!
क्या यही
जीवन है ? क्या भगवान ने तुम्हें इंसान
इसी लिए बनाया है ?
यह जीवन इसी लिए दिया की छोटे काम करो और जीवन भर छोटे ही बने
रहो.......जी नहीं जनाब, इस सोच, इन जख्मों को देने के आगे भी दुनिया है, बस जरुरत
है अपनी छोटी मानसिकता, अपनी उस मानसिकता को बदलने की किस तरह मैं दूसरे को कष्ट दूँ, किस तरह मैं दूसरे को दुखी करूँ......इन
सबमें जितनी आप अपनी ऊर्जा waste कर रहें हैं, उससे बेहतर
होगा की लोगों को अपनी अच्छाईयां बांटें, अपने मीठे बोल बांटें, अपनी खुशियों के रंग
बांटें, हर रोज बांटें....इसके लिए आपको तारीखें या मूहर्त देखने की जरुरत कतई नहीं है !
जीवन का हर क्षण उत्सव है, हर रोज
दीवाली है, हर रोज होली है.....दीपक बाहर नहीं अपने भीतर के जलाएं, अपने आंतरिक गुणों
को प्रकाशमान करें और दूसरों को रोशन करें, रंग अपने बाहर के नहीं अपने भीतर का
बदलिए......जैसे भीतर हैं वैसे ही बाहर दिखें, लोगों के प्रति अपने या अपनों के प्रति
कोई द्वेष न रखें , हर रोज दिल से गले मिलें, मन से गले मिलें...मात्र होली के दिन ही नहीं !
इस क्षण को, हर क्षण को, अपने जीवन को-एक उत्सव की
तरह, एक celebration की तरह जिएं, तो
त्यारोहों का या तारीखों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा !
रंग बाहर के बदलते बहुत देखें हैं लोग,
पर भीतर-बाहर
प्रीत रंग, पिचकारी ही चलनी चाहिए,
और दीपक भी
सिर्फ बाहर ही न जलें ,
रोशनी
तुम्हारे भीतर की जलनी चाहिए !
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