दर्द के समंदर में अपनी मुस्कान को जिन्दा रखना....!



हम इंसान हैं.....भगवान नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा की, हमें कभी कोई दर्द न हो, कोई दुःख न हो, कोई कष्ट न हो, कोई मुश्किल ना आए लेकिन इन सब से पार पाने का, इन सब से बाहर आने का एक ही रास्ता है और वो है आपकी अपनी मुस्कान....!

जब कभी लगे कि आपकी मुश्किलें बड़ी  हैं, आपका दर्द बड़ा है, बस एक छोटा सा काम कीजियेगा.....जरा मुस्कुरा दीजियेगा - अपने भीतर से कहिएगा, चलो एक बार अपनी मुस्कान को अपने चहेरे पर ला कर तो देखें, एक बार अपने होठों पर एक छोटी सी मुस्कान लाइएगा, फिर उस मुस्कान को और बड़ा करिएगा.....उसी क्षण आप पायेंगे कि 
 आपकी बड़ी सी मुस्कान के आगे आपके दुःख-दर्द सब छोटे से लगने लगेगें !

कहा भी गया है, अगर किसी लकीर को छोटा करना है तो उसके पास एक बड़ी लकीर खींच दीजिए, वो आपको छोटी लगने लगेगी, बस यही formula आपको अपने दुखों की लकीर पर भी apply करना है, उसके सामने मुस्कराहट की एक बड़ी लकीर खींच दीजिए....दुःख छोटे लगने लगेंगे, जी हाँ करके तो देखिये !

मुस्कराहट असल में करती क्या है ? जब हमारे चहेरे पर आती है तो उस क्षण के लिए हमारे मन मस्तिष्क को पूर्णतया हल्का कर देती है, और हमारा ध्यान अपनी परेशानियों के बोझ से हट कर अपने relaxed चहेरे व मन पर आ जाता है और उस समय के लिए हम अपने आप को बंधन-मुक्त पाते हैं !

यह बिलकुल सही है की धारा के विपरीत तैरना बहुत ही कठिन और मुश्किल भरा होता है, लेकिंन धाराओं के साथ बह समंदर मैं गुम हो जाने से बेहतर है की धारा के विपरीत चलने का प्रयास किया जाए, कष्ट में अपनी मुस्कराहट को बड़ा किया जाए यह जरा मुश्किल होगा, कठिन भी लगे-पर अगर आपने अपने आप को उस समय कायम रखा तो तय है की लहेरें कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, तुम्हें किनारा जरुर मिलेगा !

समय बदला नहीं जा सकता जो इस क्षण में आपके दुःख-दर्द हैं उनको बदला नहीं जा सकता, पर समय के बदलने तक उन मुश्किलों का मुकाबला मुस्कुराते हुए करिए जो है, जैसा है, जब है,...समय उसको बदल देगा, इसलिए अपने टूटने से पहले अपनी मुस्कराहट के बंधनों को तोडिए !

जितना ज्यादा दर्द गहरा हो.....उससे बड़ा मुस्कुराहटों का पहरा हो !

अपनी मुस्कराहट को अपनी ताक़त बनाएं और खुल कर जियें...खुल कर मुस्कुराएं !

मुस्कुराइए तब भी जब......आपका दर्द, आपका दुःख चरम पर हो !


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