हर नारी को उसके हर रूप में सलाम...!
नारी का कोई भी स्वरूप हो, किसी भी रूप में हो हर समय एक मजबूत स्तम्भ की तरह अपने परिवार के साथ खड़ी रहती है और परिवार को हर तूफानों में कायम रखती है !
वो माँ है, वो बेटी है, वो बहन है, वो पत्नी है .......!
माँ के रूप में वो ताकत है अपने बच्चों की , उनको सही राह दिखाने वाली, उनकी मुश्किल घडी में उनके दर्द को अपने अंदर समेट उनकी दवा है , खुद कितनी भी थकी हो पर अपने बच्चों की थकान को ओढ़ने वाली, रास्तों के कंकर हटाने वाली और उनको मंजिल तक पहुंचाने वाली माँ ही है......उस माँ को सलाम जो शांत है, निर्मल है ,शीतल है......एक दरिया है माँ जिसके द्वार से कभी भी कोई प्यासा नहीं गया, न ही जाएगा, वो माँ है.....!
बेटी के रूप में उस नारी को सलाम जो अपने माता-पिता की लाठी है उस वक्त भी जब बेटों के रूप की बड़ी से बड़ी लाठियां भी धराशाई हो जाती हैं अपनी जिम्मेदारियों को निभाने से पहले, लेकिन बेटी का सहारा कभी नहीं टूटता, जो बेटा है दीपक अगर तो बाती उसमें बेटी है खुद को जलाकर कह रही अंधेरों से मुझको लड़ने दो......मुझको आगे बढ़ने दो, अंधेरों से लड़कर ,और आगे बढ़कर वो वह सब काम कर रही है, वो सारी जिम्मेदारी निभा रही है जिसे शायद कोई अधूरा छोड़ गया है, अपने वक्त की कमीं, या अपनी मज़बूरी के बहाने की आड़ में, सलाम उस हर बेटी को जो कभी बटीं नहीं..... रिश्ते बनाने के सफ़र में, वो सदा बेटी ही रही !
वो बहन है...... जो गिरता हुआ नहीं देख सकती अपने भाई को, वो बहन है जो भाई की ताकत है उसकी मंजिल के सफर में, वो गुरु है अपने भाई की और लौ है ज्ञान की उसकी शिक्षा के सफर में , वो रोशनी है अंधेरों में, अपने भाई के रास्तों को रोशन करती ! सलाम उस बहन को जिसके अंदर अपनत्व भी है और गुरु-तत्व भी है !
वो ताकत है उस पति की जो थका है पर टुटा नहीं है , जो रुका है पर गिरा नहीं है , वो बताती है की 'न रिश्ते बिखरें बनने से पहले और न ही मांगे हिसाब जिंदगी चलने से पहले', सब अपने हैं और हम सबके हैं यही परिवार का मूल-मन्त्र हो ! वो सदा जिम्मेदारियों का अहसास भी कराये और उनको पूरा करने में अपना कंधे से कंधा भी लगाए, उस पत्नी को सलाम जो एक मजबूत सेतु है रिश्तों इ समंदर पर..... !
हर नारी को उसके हर रूप में सलाम...!

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