मैं कौन हूँ ? मैं क्यों हूँ ? में कब तक हूँ ?


मैं कौन हूँ  ? मैं क्यों हूँ ? में कब तक हूँ ?


मैं कौन हूँ ? 

मैं एक किताब हूँ जिसके ज्यादतर पन्ने मेरे माता- पिता ने लिखें हैं, जिसको पढ़ कर कभी मेरी सफलता पर उनकी आँखों में ख़ुशी के आँसूं निकले होंगें, और जब कभी उनकी उम्मीदों को मेने तोड़ा होगा, उनके अरमानों को दबाया होगा, उनके आगे बड़े हाथों को जब नजरअंदाज किया होगा तो दुःख के आंसूं भी निकले होंगें, मैं वो किताब हूँ जिसकी तस्वीरों को मेरे बच्चों ने उल्टा पुल्टा होगा, अपने अरमानों की लकीरों को उसके पन्नों पर उकेरा होगा और जिनको पढ़ कर आगे बढ़ने के सपने देखे होंगें, मैं वो किताब हूँ जिसको मेरी पत्नी ने बहुत संजों कर रखा होगा अपने भविष्य के लिए , हाँ में वो किताब हूँ जिसके कुछ पन्नों को मेरे अपनों ने फाड़ा होगा, मरोड़ा होगा अपने  मतलब के लिए........!

मैं क्यों हूँ ?

मैं एक किताब हूँ और इसलिए हूँ, जिसको पढ़ कर मेरे अपने अपना सफर पूरा कर सकें, मेरी गलतियाँ उनके  लिए सबक हों, और मेरी सफलताएं उनके लिए मिसाल बनें ! 

मैं कब तक हूँ ?

मैं कल भी था, मैं आज भी हूँ और मैं कल भी रहूँगा, जिसको मेरे साथ के आज भी पढ़ रहे हैं और आने वाले भी पढेंगें,  किन्तु यह तभी संभव होगा जब मेरे अंदर सच्चाई और अच्छाई का वजन होगा, वरना में भी किसी दूसरी क़िताबों की तरह धूल खा रहा होऊंगा !

मैं हूँ....... क्योंकि मैं........हूँ ! 





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