देने का सुख... सबसे बड़ा सुख !
जीवन में देने का सुख......दुनिया का सबसे बड़ा सुख !
जी हाँ देने के सुख से बड़ा कोई भी सुख नहीं है, आगे बढ़कर, अपनी मुट्ठी खोल कर, दिल खोल कर, बिना स्वार्थ शुद्ध मन से दीजिये और उनको दीजिए जिनको वाक़ई में जरुरत है, भरा हुआ घड़ा कभी नहीं भरता, बल्कि उससे छलक कर अन्न-जल बर्बाद ही होता है, भरा हुआ पेट कभी भी अन्न का सम्मान नहीं कर सकता इसलिए उन्हें ही दीजिये जो जरुरतमंद हैं, देने से कभी भी कोई चीज कम नहीं होती बल्कि बढ़ती ही है- जी हाँ इससे बढ़ता है आपके अंदर का संतोष, आपका सुख, आपका आत्म-सम्मान, आपके अंदर की शांति- सुकून, आपकी तृप्ति, आपके संस्कार इसलिए दीजिये और न सिर्फ समय रहते दीजिए कहीं देने के सुख से आप वंचित न रह जाएँ और समय निकल जाए, आप निकल जाएँ !
जिनको किसी भी चीज की जरुरत है उन्हें वह जरूर और समय पर दीजिये अपना समय निकाल कर दीजिए :
बड़ों को बुजुर्गों को- सम्मान और समय
बच्चों को, अपनों को- प्यार
टूटे हुए को-सकारात्मकता के बोल
रूठे हुए को- मीठे बोल,
भूखे को- दो रोटी,
निर्धन को- तन ढकने के लिए कपडे,
अपने आप को- समय
अपने चेहरे को- मुस्कान,
बहस को- विराम और मौन
गिरते हुए को- सहारा
और डूबती कश्ती को किनारा......!
गिरते हुए को- सहारा
और डूबती कश्ती को किनारा......!
आप पाएंगे की उपरोक्त किसी भी चीज को देने में आप का कोई बहुत बड़ा मोल नहीं लगेगा और न ही इसकी कोई भारी कीमत आपको चुकानी पड़ेगी, लेकिन आपके द्वारा दी गई वस्तुएं जिसको मिलेंगी वह उसके लिए अनमोल होंगीं, जिसका सुकून उससे ज्यादा आपको मिलेगा यही है देने का सुख....!
कहते हैं बंद मुट्ठी लाख की, और खुल गई तो ख़ाक की,
में कहता हूँ- जीवन भर बंद रह गई मुट्ठी...
और अंत समय जब आया तो खुली.... हाँ थी खुली, भरी हुई थी राख की !
कहते हैं बंद मुट्ठी लाख की, और खुल गई तो ख़ाक की,
में कहता हूँ- जीवन भर बंद रह गई मुट्ठी...
और अंत समय जब आया तो खुली.... हाँ थी खुली, भरी हुई थी राख की !
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