भीतर जलने से अच्छा है, बेहतर जलिए....!


कभी आप तारामंडल गयें हों तो आपने पाया होगा की हर ग्रह पर, अगर आपका भार देखा जाए तो वह अलग-अलग- आएगा यानी हर ग्रह के ऊपर आप अलग-अलग वजन के होंगें.... यही फलसफा जीवन में भी लागु होता है आप किसी पर भार होंगें और किसी के लिए आप ही पतवार होंगें, ऐसा क्यों होता है की एक ही व्यक्ति किसी के लिए भार होता है और किसी को वह हल्का महसूस होता है और उसके साथ वह बहुत ही comfortable feel करता है !

ऐसा तब होता है, जब हम या तो किसी दायरे में कैद हैं या किसी छोटी सोच का शिकार हैं....जिससे हम बाहर नहीं निकलना चाहते, अगर आप चाहते हैं की आप सब के लिए एक सामान वजन के रहें - सब के लिए सामान रहें, आपको सबसे एक सा प्यार मिले, आप किसी पर भार न बनें, आप किसी के लिए “मज़बूरी” नहीं अपितु “जरुरी” बनें, तो किसी को भी बदलने से पहले अपने आप को बदलिए....!

सारी कायनात लगा दी मैनें “दुनिया” बदलने में,
ता-उम्र “शोलों” को शीतल करनें में मेरा हाथ जल गया,
और इक क्षण लगा....हाँ, बस इक क्षण लगा,
संसार बदलने में, जब....“मैं” बदल गया,
जब “मैं” बदल गया...!

कहा भी गया है मैनें सारा वक्त लगा दिया आइना साफ़ करने में, पर अपने आप को कभी साफ़ नहीं किया जिसकी सबसे पहले और सबसे ज्यादा जरुरत थी, हम सभी चाहते हैं की सामने वाला, सामने की परिस्थितियाँ सही रहें, लेकिन कभी भी हम इसकी तह में नहीं गए की इन परिस्थितियों के लिए कौन जिम्मेदार है, हम दूसरे की गलती सुधारने में जायदा वक्त लगाते हैं बजाये की खुद को सुधारने के क्योंकि यही सबसे कठिन काम है, हम नहीं चाहते कठिन काम करना, हम नहीं चाहते अपने दायरों से बाहर आना, अपनी संकुचित मानसिकता से बाहर आना, जनाब नजरिया बदलेंगे तो नज़ारे अपने आप ही बदल जायेंगे !

देखिये तारामंडल की बात ओर है, आपका भार किसी भी ग्रह पर हो किसी के लिए कभी भी भार न बने, बल्कि आप औरों का भार अपने कन्धों पर उठा सकें, जिम्मेदारियां ले सके, आप भार नहीं किसी के तारनहार बनिए यही जीवन जीने की सच्ची कला है, ओर जिस दिन आप इस कला के कलाकार  बन गए तो न आप किसी पर भारी होंगें न ही आप पर कोई, आपका शारीरिक वजन चाहे जितना भी क्यों न हो अपना मानसिक वजन हल्का रखें, ऊँचाइयों को पाना है तो हल्के हो जाएँ बहती हवा की तरह बहें, मंजिल नजदीक लगेगी....भीतर जलने से अच्छा है, बेहतर जलिए किसी को रास्ता ही दिखेगा !









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