आप क्या करना चाहेंगे, मिसाल देना या मिसाल बनना !
मिसाल
देने में मात्र दस सेकंड लगतें हैं.....किन्तु मिसाल बनने में दस साल या उससे भी कई
ज्यादा वर्ष लग जातें हैं !
तो
फिर आप क्या करना चाहेंगे, मिसाल देना या मिसाल बनना,
कुछ चीजें जल्दी होती हैं पर कुछ क्षण
चलती हैं ओर कुछ चीजें समय लेती हैं पर लंबे
समय तक चलती हैं, यह आप पर निर्भर करता है की “आप मिसालें तलाशना चाहते हैं या फिर
मिसालें कायम करना”, ऐसा बनिए की लोग आप
की मिसाल दें, क्योंकि हममें से ज्यादातर लोग अपना अधिकतम समय मिसालें तलाशनें में
लगा रहें हैं !
जिनकी
आप मिसाल दें रहें हैं क्या कभी आपने सोचा है की उनमें ओर आप
में क्या फर्क है- सिर्फ इतना सा की वो लगातार
“गतिमान” है ओर आप लगातार “स्थिर” हैं, वह हार कर भी कभी रुके नहीं ओर आपने जीत के
स्वाद कभी चखे नहीं, उसे अपनी मंजिल का भी पता है, उसके रास्ते का भी और अपनी
रफ़्तार का भी आपको न मंजिल का पता, न रास्ते का और न रफ़्तार का !
“तालाबों” ने कभी समुन्दर नहीं देखा,
“बहता” हुआ पानी ही समुंदर तक पहुंचा है,
जो “चलेगा” मंजिल उसी की, मिसाल भी उसी की,
जो “परिंदा” शाख से उड़ा नहीं वो कब “घर” तक पहुंचा है...!
हार
मिसाल कायम करने वालों को कभी भी विचलित नहीं करती बल्कि वह हार से भी सबक लेतें
हैं और आगे बढतें हैं, रुक कर कभी नहीं बैठते सदा ही गतिमान रहतें हैं, उनका सफर
ही उनकी एक मिसाल होता है, उन्हें कभी नहीं पता होता की उनके सफर में कितनी
मिसालें कायम हो गई हैं, क्योंकि वह अपने सफर-अपनी मंजिल से कतई भी भटकना नहीं
चाहते !
उनकी
गति उनकी होती है, उनका सफर उनका होता है, उनके रास्ते उनके होतें हैं, वो पूरी
तरह मुक्त होतें हैं दायरों से, संकुचित सोच से और “जहाँ लोगों की सोच खत्म होती
है वहाँ से उनकी सोच शुरू होती है....” यही फर्क है मिसाल देने वाले और मिसाल बनने
वालों में !
जिंदगी
भर मिसाल देने वाले, एक ही लीक पर चलते हैं,
और जो-“जरा
हट कर चलतें हैं” वही दुनिया में मिसाल बनतें हैं...!
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