"नमन"

नम हर आँख है.....,

जल रही है वादियाँ, चीड़ भी हैं जल उठे,
अंधेरों से लड़ते-लड़ते, बुझ गए  चिराग हैं,
टूट गई हैं चूड़ियां और माँ भी स्तब्ध है,
जल गए ख़्वाब सब...बेटी पूछती यह कैसी आग है ! 

हर "जान" की कीमत होती है....,
हर "कीमती" जान है,
इसका "गुनहगार" कौन है,
मांग रही है "बदला" शहादत,  
और गूंज रहा "मौन" है !


जो चला गया कितने अरमान समेटे था,
और जो रह गए वो भी कितने अरमान समेटे थे,
इन अरमानों का हिसाब कौन देगा,
जो चले गए वो अधूरे रह गए और
जो बचे हैं वह आंसुओं में बह गए.....,

"नमन हर उस वीर को, 
जो झुका नहीं, झुका गया शमशीर को...."

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