खिंचने से बेहतर है खींचिए, चुम्बक बनिए लोहा नहीं,



खिंचने से बेहतर है खींचिए, चुम्बक बनिए लोहा नहीं,

लोहा सदा चुम्बक की तरफ खींचता है, न की चुम्बक लोहे की तरफ,

इसलिए खींचिए.......,

लोगों को अपने गुणों से, अपने संस्कारों से, अपनी काबिलियत से, अपनी मुस्कान से, अपने कर्मों से, अपनी purity से, अपनी सादगी से - जी हाँ चुम्बक बनिए लोहा नहीं....लोग भी सदा उन्हीं की तरफ खींचते हैं जिनमें यह गुण होते हैं !

आप किसी को अपनी और तभी आकर्षित कर सकतें हैं जब आप लोहे से चुम्बक के गुण की तरफ बढ़ेंगें यानी आपको भीड़ से अलग हो कर अपनी एक अलग पहचान बनानी होगी और उस भीड़ से अलग होना होगा जो की लोहे के गुण वाली है और हमेशा दूसरों की तरफ खिंचने को तैयार है जो सवभाव से सरल काम है, क्योंकि खिंचने में कम ताकत लगती है बजाये खींचने के !

आप अपने सु-संस्कारों से खींच सकतें हैं अपने बड़ों का प्यार, अपने रिश्तों में मिठास,
आप अपनी काबिलियत से खींच सकतें है नए मुकाम, 
आप अपनी मुस्कान से खींच सकतें हैं लोगों के चेहरे का दर्द और दे सकतें हैं उनको भी एक मुस्कान,
आप अपने कर्मों से खींच सकतें हैं अपनी मंजिल, अपना मकसद,
आप अपनी सादगी से खींच सकतें हैं पवित्र रिश्ते, अच्छे लोग,

यह मानव जीवन के कुछ गुण हैं, ऐसे अनगिनत गुण हैं जो मानव जीवन को चुम्बकीय बनाते हैं, और बाकी लोगों से अलग करते हैं, एक चुम्बक में लोहे के ढेरों टुकड़ों को ख़ींचने की ताकत होती है...आप भी एक चुंबकिये गुण सम्पन्न बन सकतें हैं-सरल व सहज, इस संसार में लोहे के हजारों टुकड़ें बिखरे पड़ें हैं इसलिए आप चुम्बक बनिए.....लोहा नहीं ! 



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Hallo my dear Sourav,

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