दूसरे की हार में, अपनी जीत देखने वालों को कभी भी जीत नसीब नहीं होती ...!
हल्की-हल्की बारिश हो रही
थी और बारिश का पानी जमीन पर था, इससे पहले की पानी और बड़े नीचे खड़ी एक छोटी चींटी
ने उससे बचने के लिए पास की दीवार पर चढ़ने की सोची, लेकिन चींटी बार-बार दीवार पर चढ़ने का प्रयास करती पर कुछ ऊपर जाती की वापिस नीचे जमीन पर गिर जाती, एक चींटा नीचे खडा
हो कर यह सब देख रहा था चींटीं को बार गिरते देख खुश हो रहा था, की इसके बस का काम
नहीं है अब यह नहीं बचेगी, उसकी हार में, उसके गिरने में उसको आनन्द आ रहा था वह उसके
प्रयासों का मजाक बना रहा था, अब बारिश और भी तेज हो चुकी थी, जमीन पर पानी का बहाव भी धीरे-धीरे बढने लगा था चींटीं ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और अपनी
सारी शक्ति के फिर दीवार पर चड़ने का प्रयास किया, चींटी का अपने पर विश्वास और उसकी हिम्मत
व मेहनत रंग लाई, उसका बिना रुके निरंतर किया गया प्रयास आखिर सफल हुआ और वह कुछ ही
देर में दीवार की मुंडेर पर थी, सिर्फ इसलिए क्योंकि उसने हार नहीं मानी और अपना प्रयास
निरंतर जारी रखा इस बात से बेखबर और बिना विचलित हुए की नीचे बेठा चींटा उसके बारे
में क्या कह रहा है, क्या सोच रहा है !
तेज बारिश में अचानक बारिश
के पानी का बहाव और तेज हुआ और अपने साथ नीचे खड़े चींटे को बहा कर ले गया, चींटीं ने
देखा तो दूर-दूर तक चींटा कहीं दिखाई नहीं दे रहा था.....!
अपने जीवन में आप गौर कर
के देखिएगा की कहीं हम उस ‘चींटे’ की तरह तो नहीं, अगर हैं तो तुरंत ही ‘चींटीं’ बनने का प्रयास करिए क्योंकि यह
दुनिया अनगिनत ‘चींटों’ से भारी पड़ी है जो खुद कुछ भी हासिल करने की बजाए,
दूसरे की हार में ही खुश हैं और उनका जीवन सिर्फ दूसरों की कमियाँ ढूंढने में या
दूसरे की हार में ही निकल जाता है बजाए खुद कुछ हासिल करने या पाने के और अंत में वक्त
के तेज और तीखे बहाव उनकी नईया को डुबो देतें हैं !
जीवन भर वह कुछ हासिल
नहीं कर पाते और उनकी सारी उम्र इस काम में ही निकल जाती है की-दूसरे ने क्या खोया,
दुसरा कितनी बार गिरा, दूसरा कितनी बार असफल हुआ, लेकिन हमेशा यह याद रखना की
दूसरे ने खोया इसलिए है क्योंकि कभी उसने जीवन में अपने प्रयासों, अपनी मेहनत से
कुछ पाया भी था, दूसरा गिरा इसलिए है क्योंकि वह कभी ऊँचाइयों पर चढा भी था, उसने ऊँचे
मुकाम भी देखे थे, उसको असफलता इसलिए मिली क्योंकि उसने सफलता का स्वाद भी कभी चखा
था !
सिर्फ और सिर्फ ‘एक दीवार
के नींचे खड़े रहकर दूसरे के गिरने के इन्तजार में ही उसने अपनी सारी उम्र नहीं गुज़ार
दी’......!
‘चींटीं’ को
बार-बार दीवार से गिरता देख ‘चींटा’ बहुत खुश था,
यह दुनिया
भी ऐसे अनगिनत ‘चींटों’ से भारी पड़ी है,
जो खुद
कुछ भी हासिल करने की बजाए, दूसरे की हार में खुश हैं,
और उनकी सारी उम्र इस काम में ही निकल जाती है-
‘दूसरे ने क्या खोया, दुसरा कितनी बार गिरा’,
लेकिन
हमेशा यह याद रखना-
‘की दूसरे ने खोया इसलिए है,
क्योंकि कभी उसने जीवन में अपने
प्रयासों से कुछ पाया भी था,
दूसरा गिरा
इसलिए है क्योंकि वह कभी ऊँचाइयों पर चढा भी था’,
सिर्फ
और सिर्फ ‘एक दीवार के नींचे खड़े रहकर ही दूसरे के गिरने के इन्तजार में ही उसने
अपनी सारी उम्र नहीं गुज़ार दी’......!
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