अपने होने का कभी ‘अभिमान’ मत करना !


अपने होने का कभी ‘अभिमान’ मत करना, कभी भी नहीं I
जिस दिन यह अभिमान तुम्हारे अंदर आ गया उस दिन से जो ऊँचाइयाँ तुमने देखी हैं तुम्हारा सफर उससे नीचे की तरफ को शुरू हो जाएगा I तुम आज हो कल नहीं होगे यह तय है, वक्त की सुईयां जब सिकंदर से नहीं रुकी तो तुम्हारी क्या हस्त है  और जिस दिन तुम्हें अपने होने का अभिमान हो उस दिन बाहर निकल कर सूरज को देख लेना जो शाम होते-होते ढल जायगा, जितना चाहे चाह कर भी रात में नहीं कभी नहीं निकल सकता, चाहे वह जितना भी ताकतवर क्यों न हो I
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा 
ढल जायेगा ढल जायेगा 

खाली हाथ आया है खाली हाथ जायेगा
जानकर भी अन्जाना बन रहा है दीवाने
आज तक ये देखा है पानेवाले खोता है
ज़िन्दगी को जो समझा ज़िन्दगी पे रोता है

मौत ने ज़माने को ये समा दिखा डाला
कैसे कैसे रुस्तम को खाक में मिला डाला
याद रख सिकन्दर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनो हाथ खाली थे
अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं
जंग जो न पोरस है और न उसके हाथी हैं

चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा 
ढल जायेगा ढल जायेगा 


‘अभी-मान’ या ‘अभी-न मान’ यह तुम्हें तय करना है इसलिए अभी मान लो  हमेशा कुछ चीजें मान कर चलो ओर कुछ चीजें जान कर चलो ओर अभी भी वक्त है अभी मान जाओ ओर अपने होने के अभिमान को इसी क्षण छोड़ दो....जिंदगी बहुत खूबसूरत है उसका आनन्द लो अभिमान को किनारे रख दो, वर्ना तुम्हारा अभिमान तुम्हें रात में सोने नहीं देगा ओर दिन भर जागने नहीं देगा I



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