जब कभी खूबसूरत राखी को देखें, तो उस मजबूत धागे को जरूर ध्यान में ले आना जो उसे थामे हुए है !


सोने की परत पर मोती जड़ी 'राखी' अपनी खूबसूरती चारों तरफ बिखेर रही थी, हर कोई उस को देख कर तारीफ़ किये बिना नहीं रह रहा था, 'राखी' यह सब देख अपनी खूबसूरती पर इतरा रही थी, मेरी खूबसूरती का कोई सानी नहीं,  'मैं' कलाई  की ही नहीं व्यक्ति को भी खूबसूरत बना रहीं हूँ !

यही हाल बुर्ज खलीफ़ा की तरह चमक रही एक 'इमारत' का था, लोगों की तारीफ़ सुन अपने आप पर इतराये बैगैर नहीं रह पा रही थी, 'मैं' अति खूबसूरत !

'राखी' इससे पहले और इतराती 'धागे' ने अपनी पकड़ ढीली कर ली और धड़ाम से राखी जमीं पर आ गिरी,  यह क्या थोड़ी देर पहले जो राखी अपनी चमक बिखेर रही थी अब धरातल पर थी,  राखी ने धागे से पूछा-"यह क्या किया", धागा बोला-"किसी की कलाई की शोभा तुम तभी तक बड़ा रही थी जब तक मैं तुम्हें कलाई से बांधे हुए था,  वो मैं ही था जो तुम्हें वहां टिकाये हुए था !  

यही हाल उस इमारत का भी था जिसका कंगूरा अपनी चमक पर इतरा रहा था बिना इस अहसास के कि जिस दिन नींव की ईंट सरक गई तो ताश के पत्तों की तरह भरभराता हुआ धरातल पर होगा !

जी हाँ, यही जीवन है ता-उम्र हम कंगूरे बनने में लगा देतें हैं, सुन्दर राखी बनने में लगा देतें हैं, पर कभी भी वो धागा नहीं बनना चाहते जो एक सूत्र की तरह सब को एक सूत्र में बांधे हुए है, वो मजबूत धागा वो मजबूत नींव की ईंट बनिए ताकि आपकी आने वाली पीढ़ियां आपकी मिसाल दें, आपके सहारे को एक मजबूत सहारा समझें - इसलिए इतराइये अपने पर एक मजबूत धागा होने पर न की मात्र एक खूबसूरत राखी होने पर, इतराइये अपने पर एक मजबूत नींव की ईंट होने पर न की चमकता हुआ कंगूरा होने पर....ध्यान रहे एक मोती तभी सुन्दर रूप लेता है जब वह एक मजबूत धागे में पिरोया जाता है और माला का आकार लेता है ! 

इसलिए जब कभी भी खूबसूरत राखी को देखें तो उस मजबूत धागे का और जब भी कंगूरे को देखें तो नींव की ईंट को जरूर ध्यान में ले आना जो उसे थामे हुए है  !

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