रिश्तों को शरीर के मध्य भाग से निभाएं, न की ऊपरी भाग से !


रिश्ते निभाने हैं तो दिल से निभाइए, न कि दिमाग से......!

दिमाग से निभाए गए रिश्ते ताश के पत्तों  महल की तरह होते हैं और वह ज़्यादा देर या दिन तक कायम नहीं रहते  वह जरा सी हवा में धड़-धड़ा कर गिर जातें हैं, इसलिए सदा रिश्तों को दिल से निभाएं जहाँ दिमाग का इस्तेमाल कम से कम हो, हमेशा याद रखियेगा की जहाँ दिल से दिल के तार जुड़ते हैं वहां से  हमेशा मधुर धुन और स्वर ही निकलते हैं और जहाँ दिल की जगह दिमाग के ढोलक बजते हैं वह बेसुरी धुन और स्वर ही पैदा करते हैं !

रिश्तों में बदले की भावना की जगह बिलकुल नहीं होनी चाहिए, क्योंकि बदले की आग से आप जब भी किसी को  जलाना चहाएंगें तो उस आग की  चिंगारी का आप पर भी पड़ना तय है, ठीक उस मोमबत्ती की बाती की तरह जो मोम को जलाने और पिघलाने के चक्कर में अपने आप को पूरी तरह जला डालती है और अपने को पूरी तरह ख़त्म कर लेती है, और अंत में न मोम बचता है और न ही बाती, ऐसी बदले की भावना को रिश्तों में बिल्कुल भी जगह नहीं देनी चाहिए और इससे बचना चाहिए !

इसलिए रिश्तों को शरीर के मध्य भाग से निभाएं न की ऊपरी भाग से, यानी दिल से न की दिमाग से !


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