जिंदगी सबसे हसीन तब होती है - जब न कुछ पाने की चाहत हो न कुछ खोने का गम !


ऊंचाई पर चढ़ते वक्त साँस चढ़ती है और ऊंचाई पर पहुँच कर आक्सीजन की कमी होने के कारण  साँस लेने में दिक्कत भी महसूस होती है और हम सबसे आरामदायक तब होते हैं जब हम चोटी से नीचे की तरफ उतर रहे होते हैं, यही वह समय होता है जब हमारी सांसें एकदम साधारण चल रही होती हैं  !

लेकिन हम सब ऊंचाइयों पर चढ़ने और चोटी पर कायम रहने के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा देतें हैं, अपनी साँसों की कीमत पर चोटी पाने की चाहत, अपने सुख की कीमत पर चोटी पाने की चाहत......क्यों हम चोटी से नीचे उतरने के सुकून को अपनाना नहीं चाहते, आखिर क्यों....!

क्यों हम अपनी साँसों को साधारण तरीके से चलाना नहीं चाहते , हम क्यों शर्मिन्दा महसूस करते हैं उतरने में, नीचे आने में , क्यों हम उतरने को भी उतने सम्मान के साथ अपनाते जितना की ऊपर  चढ़ने को!

क्यों हम जीवन को दांव पर लगा कर वह सब कुछ पाना चाहतें हैं, जो की सिर्फ एक  मिथ्य है - क्षणिक है, जो सदा के लिए आपके पास रहने नहीं वाला, वो मुकाम, वो चोटी, वो ऊंचाइयां जब एक दिन उतरना तय है तो क्यों न हम साधारण विचार और जीवन को अपनाएं न की उसको जटिल बनाएं !

चोटी पर चढ़ने और चोटी को पाने की चाहत कहीं गलत नहीं है लेकिन चोटी से उतरने पर भी आपके अंदर उतना ही उल्ल्हास होना चाहिए जितना की चढ़ने के वक्त था,हमारे अंदर वह सुकून होना चाहिए की हमने वह सब हासिल कर लिया जो की उतरने से पहले हासिल करना चाहिए था और अब सुकून का समय है, आनंद का समय है, साँसे जहां साधारण होंगी !

जिंदगी सबसे हसीन तब होती है - जब न कुछ पाने की चाहत हो न कुछ खोने का गम  !


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