अपनी विदाई से पहले अपने हाथ-अपनी बंद मुट्ठी खोल लें, कुछ पाने के लिए कुछ देने के लिए....!
अगर आपके हाथ, आपकी मुट्ठी बंद है-तो उसके खुलने पर आपको कुछ खोने का डर सदा आपको परेशान करता रहेगा, किन्तु अगर आपकी मुट्ठी खुली हुई है, आपके हाथ खुले हुए हैं तो आपको कुछ खोने की चिंता कभी नहीं होगी, जी हाँ मुक्त होंगें कुछ खोने के डर से !
आपके बंद हाथ आपको रोकते हैं कुछ नया पाने से, कुछ देने से और आपके खुले हाथ इस बात के प्रतीक हैं की आप किसी को कुछ भी देने और किसी से कुछ भी लेने की क्षमता रखतें हैं !
बंद मुट्ठी से जो आपके पास है आपकी मुट्ठी में है, आप एक दायरे में हैं और उस दायरे से ज्यादा कुछ भी हासिल नहीं कर सकते, जीवन में कुछ अतिरिक्त पाने और कुछ देने के लिए आपको अपने हाथों को, अपनी हथेलियों को, अपनी सोच को, अपनी मानसिकताओं को खोलना होगा तभी आप दूसरों से कुछ नया और कुछ ज्यादा पा सकतें हैं या किसी को कुछ देने में सक्षम होते हैं !
कुछ पाने का और किसी को देने का सुख सबसे बड़ा सुख है, इसका आंनद लीजिये, अपनी बंद मुट्ठी-अपनी हथेलियां तुरंत खोल दें !
कुछ पाने का और किसी को देने का सुख सबसे बड़ा सुख है, इसका आंनद लीजिये, अपनी बंद मुट्ठी-अपनी हथेलियां तुरंत खोल दें !
बंद मुट्ठी इस बात को ब्यान करती है की, हम अपने पास जो है उससे ज्यादा न कुछ पाना चाहतें हैं और न ही किसी को अपने पास जो है उसे देना चाहतें हैं, अगर आप वाकई ऐसा कर रहे है तो अपनी बंद मुट्ठी, अपने हाथ तुरंत खोल खोल दें, क्योंकि बंद मुट्ठी में हो सकता है आपके हाथ में सिर्फऔर सिर्फ पत्थर ही हों जिनसे आगे और जिनसे ऊपर का आपने कभी सोचा न हो, ऐसा न हो की आप मात्र पत्थरों को जिंदगी भर अपने पास संजोयें रखने के चक्कर में हीरों से वंचित रह जाएँ !
बंद मुट्ठी, बंद या छोटी व संकुचित मानसिकताएं ज्यादा देर तक या बहुत दूर तक की सोच नहीं रखती, न ही उनको कुछ पाने की ललक होती है न ही किसी को कुछ देने की चाहा, इसके विपरीत खुली मानसिकताएं, खुली विचारधाराएं, खुले हाथ सदा या तो कुछ पाने के लिए, कुछ सीखने के लिये तत्पर रहतें हैं और इसके साथ ही किसी को सदा ही कुछ देने के लिए, मदद के लिए तत्पर रहतें हैं, उनके पास आया व्यक्ति कभी निराश नहीं होकर जाएगा, इसलिए हमेशा जीवन में वही लोग सफल हैं जिनके हाथ खुले होते हैं, जिनकी सोच खुली है, जिनके विचार खुलें हैं !
याद रखियेगा, सिंकंदर ता-उम्र पुरे संसार को अपनी मुट्ठी में करने के लिए जिंदगी भर दौड़-धुप करता रहा और सबको अपनी मुट्ठी में करता गया पर जिस दिन वह इस संसार से विदा हुआ तो उसके दोनों हाथ खुले थे, पर देर हो चुकी थी उसने जीवन भर अपनी मुट्ठी बंद ही रखी उसे देने का सुख कभी प्राप्त नहीं हुआ, जो इस बात इस बात का द्योतक है की जिंदगी भर मुट्ठी बंद रखने, सबकुछ पाने के चक्कर में, वह किसी का प्यार, सम्मान हासिल न कर सका और जिस दिन उसकी मुट्ठी खुली वह उसका अंतिम दिन था, उसका अंत हो चूका था, वह बिना कुछ साथ लिए जो पाया था उस सब को छोड़ कर इस संसार से विदा हो चका था......इसलिए अपनी विदाई से पहले अपने हाथ-अपनी बंद मुट्ठी खोल लें, कुछ पाने के लिए कुछ देने के लिए......!
एक बात का हमेशा ध्यान रखना कुछ साथ नहीं जाएगा-
"इस धरा का, इस धरा पर ही सब धरा रह जाएगा"!

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