जा-बाण और ज-बान...!
जा-बाण और ज-बान
जा-बाण और जब बाण भी एक बार कमान से निकला तो....उसकी वापसी तो दूर, जिंदगी भर का जख्म दे कर ही जायेगा एक ऐसा जख्म जो हो सकता है कभी न भरें !
ज-बान जी हाँ जबान के बाण यानी 'शब्द' भी एक बार मुहं से निकल गए तो लौट कर कभी नहीं आ सकते, हो सकता है बाण से तो व्यक्ति एक बार बच भी जाए पर शब्द जब लगते हैं, जब चुभते हैं तो जख्म शरीर पर नहीं मन पर करते हैं, मस्तिष्क पर करते हैं और इनसे शरीर नहीं, मन मरता है- मस्तिष्क मरता है, 'शब्दों' की ताकत 'बाण' से ज़्यादा ताकतवर होती है, बाण अगर शरीर पर असर करता है तो शब्द मस्तिष्क पर इसलिए जबान और बाण दोनों पर नियंत्रण रखिये ताकि न बदन को नुक्सान हो न ही मन को !
सदा ऐसी बानी बोलिये न मन का आपा खोये,
मीठे हैं 'शब्द' और कड़वे भी हैं 'शब्द',
फल वैसा पाएगा, जैसे बीज कोई बोये !
'ज-बान' और 'जा-बाण' में कोई नहीं है फर्क,
निकल गए जो एक बार तो जख्म करने में लगाते नहीं इक क्षण,
एक तीखा 'बाण' और दुसरा कड़वा 'शब्द',
घायल करे एक तन को और दुसरा करे घायल मन......!
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