डोर और पतंग का रिश्ता बेमिसाल है....!
डोर और पतंग का रिश्ता बेमिसाल है.....
एक को नीचे को खींचों तो दुसरा ऊपर को जाता है यानि एक, दूसरे को ऊपर करने के लिए नीचे को आता है, जी हाँ, डोर को जितना नीचे को खींचों, पतंग उतनी ही ऊपर को जाती है, यह डोर और पतंग का रिश्ता मिसाल है हम सभी के लिए, की किसी को ऊँचाई देने के लिए किसी को नीचे आना पड़ता है, किसी को कुछ मुकाम देने के लिए कुछ झुकना पड़ता है यही इनके और हमारे रिश्तों की गहराई है और जिसने रिश्तों की इस गहराई को महूसस कर लिया किया वह सफर और मंजिल दोनों का मजा ले सकता है !
डोर ने कभी यह नहीं सोचा की पतंग को ऊपर पहुंचाने के लिए में क्यों नीचे आऊँ और फलस्वरूप कुछ हीसमय बाद पतंग डोर को भी अपने साथ ऊपर को ले जाती है, यह ऊपर-नीचे होने की जो प्रक्रिया है यह दोनों के रिश्ते की अहम कड़ी है, पतंग को डोर संग ऊँचाइयों को छुने का और डोर को पतंग को दिशा और मुकाम देने का जो अनकहा और अटूट रिश्ता है वह अतुलनीय है !
हमारे रिश्ते भी डोर और पतंग जैसे अटूट होने चाहिए जिसमें न किसी को नीचे आने का अफ़सोस हो और न ही किसी को ऊपर जाने का अभिमान और यह अहसास हो की जब तक वह आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, बंधे हुए हैं तब तक ही दोनों की कीमत है, क्योंकि जिस शण एक का भी साथ छुठा या एक ने भी साथ छोड़ा उसी समय दोनों के सफर को विराम लग जाता है, दोनों की उड़ान, दोनों क सफर, दोनों की मंजिल एक दूसरे के बैगेर अधूरी है !
हमारे रिश्तों में भी डोर और पतंग की तरह का सामन्जस्य होना बहुत जरुरी है जिसमें हमें यह अहसास हो की एक के बैगेर दुसरा अधूरा है और जहाँ दोनों की अपनी-अपनी अहमियत का अहसास हो, अपनी
जिम्मेदारी का अहसास हो, अपने होने का अहसास हो जिधर न किसी को नीचा दिखाने की होड़ हो और न ही किसी को अपने ऊपर होने का अभिमान हो , यही तालमेल डोर और पतंग को और हमारे अपने और अपनों के रिश्तों को थामे हुए है !
बेमिसाल है रिश्ता डोर और पतंग का,
एक नीचे को आता है दूसरे को ऊपर पहुंचाने के लिए,
हमारे रिश्ते भी कुछ इसी तरह होने चाहिए,
जिसमें कुछ नीचे हो जाएं हम, किसी अपने के ऊपर से जाने के लिए !
रिश्तों में भी डोर और पतंग की तरह का सामन्जस्य होना चाहिए,
जिसमें यह अहसास हो की दोनों की उड़ान, दोनों क सफर एक दूसरे के बैगेर अधूरा है !
मकर संक्रांति आप सभी के लिए मंगलमय हो...!
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