खुशी क्या है ?




खुशी क्या है ?
खुशी की सरलतम परिभाषा है-
‘न कुछ पाने के लिए कुछ खोने को हो और न कुछ खोने के लिए कुछ पाने को हो’
ख़ुशी मतलब - जो है उसमें भी संतुष्टि और जो नहीं है उसमें भी पूर्णतया संतुष्टी !

ख़ुशी कहाँ है?

ख़ुशी आपके आस-पास नहीं आपके अंदर है , आपके भीतर है....आपके वर्तमान में है, जो बीत गई-वो बात गई खुशियां तलाशिए नहीं इसको महसूस कीजिये अपने भीतर, अपने लिए यह काम आपको ही करना है अपने भीतर !

जो आपका है, वही आपका है उसे स्वीकार करें और जो आपके पास नहीं है वह किसी और के हिस्से का है उसे भी स्वीकार करें, जो आपके पास है उसी में ही खुशियाँ तलाशिये, जी हाँ, खुशियाँ आपके अंदर  हैं उन्हें बाहर मत तलाशिये ! 

खुशी उसी में है जब कुछ पाने की कीमत पर हमें अपना कुछ खोना न पड़े और न ही कुछ खोने के लिए हम अधिक पाने की चेष्ठा करें, अति करें ऐसा न हो इस क्रिया और प्रक्रिया में कहीं हम अपने वर्तमान के आनन्द से पूर्णतयाः वंचित रह जाएँ क्योंकि खुशियाँ आपके वर्तमान में है इस क्षण में है, न आपके भुत में-न आपके भविष्य में !
खुशी एक स्वभाव है, एक ऐसा भाव जो स्व: ही आपके अंदर होना चाहिए, जिसे आपको ही अपने अंदर अपने लिए ही पैदा करना है, यह काम आपके लिए  कोई और नहीं कर पाएगा, खुशी एक तिनके में भी हो सकती और ख़ुशी सारी कायनात पा कर भी हो सकता है न मिले !  

डूबते को तिनके का सहारा भी ख़ुशी है,
और डगमगाती किश्ती को किनारा भी अगर किश्ती न चाहे तो उसके लिए ख़ुशी नहीं  है !

खुश होने के लिए किसी समय का, किसी मुहर्त का इन्तजार मत करिए,
खुशी करनी है तो गुणा ही करिए, उसका भाग मत करिए,
जिंदगी निकल जायेगी गर तलाशोगे तुम,
आपके भीतर है यह, तलाश इसकी बाहर मत करिए !

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