मैं....मैं हूँ, मैं कोई और नहीं हूँ !


जरुरी नहीं है की आप कम बोल रहे हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है की आपका ज्ञान कम है, बल्कि यह इस बात को साबित करता हो की आप यह जानतें हैं की आपको कहाँ बोलना है, कब बोलना है और कितना बोलना है  !

मैं कम बोल रहा हूँ, मैं शोर नहीं हूँ,
मैं सुन रहा हूँ, मैं कमजोर नहीं हूँ,
मैं सरल हूँ, मैं कठोर नहीं हूँ,
मैं ठिकाना हूँ अपनों का, मैं गैरों का ठोर नहीं हूँ,
मैं  तजुर्बे की ढलती सांझ सही, जलती हुई भोर नहीं हूँ, 
मैं शीतल हूँ चाँद सा, वियोग में लिपटा चकोर नहीं हूँ,
मैं शांत हूँ किनारे की तरह, मैं समंदर का जोर नहीं हूँ,
मैं रोशनी हूँ एक छोटे दीपक की, अमावस्या का अन्धकार घनघोर नहीं हूँ,
मैं वर्तमान हूँ, मैं बीत गया या आने वाला दौर नहीं हूँ,
मैं....मैं  हूँ, मैं कोई और नहीं हूँ !




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