परिस्थितियों जैसी हैं उन्हें वैसा ही स्वीकार करें- पांच सूत्र (१)
परिस्थितियों जैसी हैं उन्हें वैसा ही स्वीकार करें- पांच सूत्र (१)
समय बहुत बलवान है ऐसा किताबों में लिखा गया है और हमने उसे बार-बार पढ़ा भी है और समय-समय पर महसूस भी किया है और एक बार फिर वक्त ने इसका अंदाज हमें दिला दिया है की उससे कोई नहीं जीत सकता और चाहा कर भी समय की धारा को कभी मोड़ा नहीं जा सकता !
एक बार मैंने कहा था की जब आप कतार में सबसे पीछे खड़े होंगें और कोई और आपका नेतृत्व कर रहा होगा तो आपको किंचित भी दुखी होने की, परेशान होने की जरुरत नहीं है क्योंकि जब कतार वापिसी करेगी तो आप सबसे पीछे नहीं बल्कि सबसे आगे होंगे और कतार की कमान संभाल रहे होंगे, कतार का नेतृत्व कर रहे होंगें उसी कतार का जिसमें कभी आप सबसे पीछे थे, यांनि समय और परिस्थितियां सदैव एक सी नहीं रहती बस जरुरत है आपको अपने आपको क़ायम रखने की !
वर्तमान विश्व में जो परिदृश्य बने हुए हैं उसमें यह बात बिल्कुल सटीक और सही साबित होती दिखती है और इन्हीं परिस्थितियों को एक शृंख्ला-बद्द तरीके से एक-एक मोती को हम माला मैं पिरोने का प्रयास करेंगें:
१) समय चलायमान और परिवर्तनशील है वह कभी भी एक सा नहीं रहता :
हमारे देश की जो स्थिथिति पुरे विश्व में थी आज उस सोच में परिवर्तन दिखता है और जो विकसित देश कभी विकासशील देशों को हीनता की दृष्टि से देखते थे आज उनकी और विवषता और मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ा रहे हैं यह एक परिवर्तन मात्र है जो बताता है की समय चलायमान और परिवर्तनशील है ! सभी विकसित देशों की स्थितियों के विपरीत हमारे देश की स्थिति को देख कर आप अंदाजा लगा सकते हैं हम अभी भी अपने पैरों पर कायम हैं और आगे भी बनें रहेंगें,
२) हमेशा अपने साथ घटने वाले बुरे से बुरे के लिए भी तैयार रहे:
हमेशा इस बात के लिए तैयार रहे की किसी भी होनी या अनहोनी से बुरे से बुरा आपके साथ क्या घटित हो सकता और आप उस बुरे दौर से वापसी के लिए किस तरह तैयार हैं या नहीं भी हैं तो उसके लिए उस बुरे दौर के आने पहले आपको क्या-क्या तयारियाँ करने की जरुरत है !
विकसित देशों की आज़ जो परिस्थिति है उसका एक सबसे बड़ा कारण यह है की उन्होंने और उनके नागरिकों ने कभी विपरीत परिस्थियों कीअति का कभी भी अपने जीवन काल में सामना नहीं किया और उन्होंने सब कुछ अच्छा देखा और बुरे की कल्पना नहीं की और इसलिए जब वक्त विपरीत हुआ तो वह इसको अपनाने और उसका मुक़ाबला करने की स्थिति में बिलकुल भी नहीं दिखे, इसलिए आप कभी भी अपने आप को कतार में पीछे होने का दुःख नहीं करना क्योंकि नेतृत्व करने से ज्यादा भी जरुरी है की कतार में अनुसाशन में रहना चाहे उस समय आपकी उसमें कोई भी पोजीशन हो, अगर आपने अंतिम पोजीशन देखी हैं तो तय है जब स्थितियां बदलेंगीं तो आप नेतृत्व करने में भी सक्षम होगे !
३) समय से मुक़ाबल करने से बेहतर है उसमें कायम रहना और उसके साथ कदम-ताल से चलना:
जब समय को बदला नहीं जा सकता, जब समय को मोड़ा नहीं जा सकता तो उसमें वही कायम रहेंगें जो समय के साथ कदम और उसकी दिशा में ताल से ताल मिला कर चलेंगें और जो लोग दुविधा में रहेंगें, विचार करते रहेंगें उनकी दशा और दिशा समय, समय से पहले ख़राब कर देगा, कभी भी धारा के विपरीत जाने में ज़्यादा शक्ति और परिश्रम की हानि होती है बजाये धारा के साथ चलने के !
४) जब अँधेरे घने हों तो छोटे से दीपक की रोशनी को भी सूरज समझें :
जब हार नजदीक हो, जब सब दरवाज़े , सारे किवाड़ बंद हो रहे हों तो खिड़की से आती हुई रोशनी का भी सूरज की तरह सम्मान करना हमें आना चाहिए, उस रोशनी का सही और वक्त के अनुसार इस्तेमाल करना हमें आना चाहिए, अगर आप ऐसा नहीं कर रहे और पीछे की तरफ की खिड़की की तरफ अपनी पीठ कर सिर्फ दरवाजा खुलने का इन्तजार कर रहे हैं और रोशनी की बजाये अँधेरे को निहार रहे तो जीवन भर आप इसी तरह खिड़की की रौशनी से वंचित रह जाएंगे !
५ ) जरूरतों का गुलाम बनने से बेहतर है उनसे मुक्त हों :
आपकी जरूरतें आपकी गुलाम नहीं बल्कि अधिकतर आप उसके गुलाम होते हैं, जरुरत हमेशा अहम नहीं हैं बल्कि वह मात्र आपके मन का एक वहम हैऔर आप ही हैं जो अपनी जरूरतों को कम या ज्यादा कर सकतें हैं कम जरूरतों में भी आपका जीवन बेहतर तरीके और सुचारु रूप से चल सकता है !
आपकी जरूरतें आपकी गुलाम नहीं बल्कि अधिकतर आप उसके गुलाम होते हैं, जरुरत हमेशा अहम नहीं हैं बल्कि वह मात्र आपके मन का एक वहम हैऔर आप ही हैं जो अपनी जरूरतों को कम या ज्यादा कर सकतें हैं कम जरूरतों में भी आपका जीवन बेहतर तरीके और सुचारु रूप से चल सकता है !
इस श्रृंखला को यूँ ही आगे भी जारी रखेंगें की वर्तमान परिस्थितियां और समय हमें और क्या-क्या दिखा और सीखा रहा है......!
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