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कोई भी चीज स्थाई नहीं है.... सब बदलता है !

 जब वक्त ख़राब हो तो ....भागिए मत, रुकिए समय को समय दो, जब वक्त अच्छा हो...तो भी भागिए मत, रुकिए अपने अहम का वहम न हो ! कोई भी चीज स्थाई नहीं है.... सब बदलता है, दुःख...सुख में, कष्ट...आराम में, आंसूं... मुस्कान में, ये सब मुमकिन है तभी जब वक्त के बदलने देने का हम इन्तजार करें, वक्त को चलने दें...हम ठहरें ...,,, और हम वक्त को बदलने दें, न की हम वक्त के आगे समर्पण कर दें और हार मान लें !

अपने ख़राब समय में रफ़्तार की बजाय सयंम को तवज्जो दें !

 रुको और देखो......आपको अपने जीवन में कुछ चीजें बदली हुई मिलेंगी उनमे से एक है परिस्थितियां और दूसरा आपका आत्मविश्वास ! समय अगर सही नहीं है तो....रुकिए और आने आप को कुछ समय दो....आपको कुछ समय पश्चात् अपनी परिस्थितियाँ बदली हुई मिलेगी  और आप नई उर्जा से अपनी बदली हुई परिस्थितियों में अपने नए आत्मविश्वास के साथ आगे बढेंगे और आपकी गाडी फिर पटरी पर होगी..... अपने ख़राब समय में रफ़्तार की बजाय सयंम को तवज्जो दें ! कठिन  समय हमें तोड़ता है....और बिखेरता है-  टूटने और जुड़ने.....बिखरने और सिमटने के बीच  जो बात बहुत जरूरी है वह है-  सयंम और समय , जिसने इन दोनों का ध्यान रखा वह संवर गया वह तर गया .....!

गुरुर से छुट जातें हैं पराये और हर अपने भी दूर होते हैं !

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"गुरुर"  दीवार को गुरुर था अपने वजूद का, सिर्फ एक 'पत्थर' निकला 'नींव' का और पूरी 'दीवार' हिल गई, पतंग को गुरुर था अपनी ऊंचाई का, अपनी उड़ान का , एक क्षण में डोर कटी और पतंग मिट्टी में मिल गई, बाँध को गुरुर था नदी को बाँधने का, रोद्र रूप धरा जब नदी के आवेग ने, बाँध पानी-पानी हो गया, नदी को गुरुर था अपने वेग का, अपने आवेग का , ज्यों ही समुंदर में मिली, अ स्तित्व उसका बेमानी हो गया ,  पेड़ को गुरुर था अपने तने का, अपने फूलों का अपने फलों का, किन्तु जब जड़ों ने साथ छोड़ा, पेड़ पूरी तरह धराशाई हो गया, रूपए को गुरुर था अपनी कीमत का, किन्तु जेब में धुलकर पाइ-पाई हो गया, व्यवहार बदल जातें हैं और शब्द चुभन देते हैं, गुरुर से छुट जातें हैं पराये और हर अपने भी दूर होते हैं, और विश्वास होता है जिनको अपनी जड़ों पर, अपनी  नींव पर, वहाँ ‘हम’ जीत जाता हैं और उनके क़दमों में ‘मैं’ चूर-चूर होते हैं....., अभिमान की किश्तियाँ अक्सर किनारों  पर डूब  जाती हैं,  मिल जातें हैं किनारे उनको जिनकी पतवार में नम्रता और विनम्रता का दम होता है   और...

अपने दुखों की गठरी दूसरों पर थोपने से बेहतर, अपने दुखों का मुकाबला करें और अपनी ताकत अपने दुखों की गठरी को छोटा करने में लगाएं !

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यह कोई कहानी नहीं यह एक हकीकत है जो कभी न कभी हम सब क साथ घटी होगी या फिर घट रही होगी….! एक आदमी अपने घर से एक गठरी ले कर निकला, दिमाग में हलचल और चिंता 'आज इस  गठरी को किसी न किसी को दे कर ही घर आऊंगा' घर की सीढ़ियां उतरते हए उसके मन में बहुत सवाल थे जिसके जवाब उसे मिलेंगें या नहीं इसका उसे पता नहीं था, कार की पिछली सीट पर उसने अपनी गठरी रखी और कार स्टार्ट कर चल दिया, मुख्य सड़क पर आते ही एक ट्रैफिक पुलिस वाले ने उसकी कार को साइड में लगाने का इशारा किया, व्यक्ति ने कार साइड में लगाई  और पुलिस वाले से रोकने का कारण पूछा, 'अपनी गाडी के कागज दिखाओ'  "कागज़, वह तो मेरे पास नहीं हैं", पुलिस वाले ने आँखें दिखाते हुए कहा "तो जनाब गाडी से बाहर निकलिए और आगे  जाना चाहते हैं तो  पैसे निकालिए  ", व्यक्ति बोला लेकिन वो भी मैं ले कर निकलना भूल गया, हाँ....किन्तु  मेरे पास एक गठरी जरूर है उसको आप लेना चाहेंगें तो मैं आपको ख़ुशी-ख़ुशी दे दूंगा, मैं उसको देने ही निकला हूँ, पुलिस वाले ने इधर-उधर देखा  कहा "निकालो, जल्दी से पकड़ाओ इसे", गठरी बग...

सयंम और समय

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सयंम और समय  जब हमारे पास समय होता है तो सयंम नहीं होता और जब सयंम आता है तो समय निकल गया होता है ! एक बार की बात है एक व्यक्ति अनजान और सुनसान टापू पर अकेला फंस गया, बहुत प्रयास और इन्तजार के बाद भी उसे वहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था, दिन बीतते गए उसके सब प्रयास और आशाएं उसे ख़त्म होती सी लगी और एक दिन अचानक सवेरे के समय एक खाली किश्ती समुन्दर की लहरों से टकराती हुई टापू की तरफ आती दिखी व्यक्ति की ख़ुशी का ठिकाना न रहा, टापू से निकलने की उसकी उम्मीद जाग उठी, वह प्रफुलित हो उठा क्योंकि उसके कठिन समय की समाप्ति होने वाली थी, उसके चेरहे पर अनजान सी ख़ुशी थी बहुत दिनों के सब्र के बाद उसका बुरा समय जाने वाला था और उसे अपने सामने किश्ती के रूप में एक बहुत खूबसूरत समय दिखाई दे रहा था ! किन्तु किश्ती थी की समुद्र की लहरों में हिचकोले खाती कभी किनारे की तरफ आती और कभी की लहरों के साथ अंदर को गहराई की तरफ खींची चली जाती,  सुबह बीती और दोपहर हो गई किन्तु लहरों से लड़ती किश्ती किनारे लगने का नाम नहीं ले ...

पहले बीज बोइये और फिर फलों का आनन्द लीजिए !

बीज बोओगे तभी फल पाओगे ! क्या कभी बिना बीज के भी फल मिलता है ? हाँ,  बिना बीज के भी फल मिलता है पर उसके लिए आपको किसी का मोहताज होना पड़ता है, किसी के चाहने और न चाहने पर निर्भर होना पड़ता है, अपने पेड़ के फल आपको दिए तो दिए और नहीं दिए तो नहीं यह पूर्णतयाः दूसरे की इच्छा पर निर्भर करता है और अगर दिए भी तो हो सकता है तब आपकी जरुरत ही ख़त्म हो चुकी हो, हो सकता है आप उनके पाने का इंतजार कर थक चुके हों......, या फिर आप फल न मिलने पर किसी और के हिस्से के फल छीनने का प्रयास करें, उसकी मेहनत, उसके परिश्रम का फल जबरदस्ती हथियाने का प्रयास करें जो की बिलकुल भी न्योचित या न्यायसंगत नहीं है और इस तरह छीने गए फल कभी भी फलदायक नहीं होते और हमेशा-हमेशा के लिए आपको किसी की दया का पात्र बना देता है, आप हमेशा के लिए बैसाखियों पर आ जातें हैं, अपने कदमों, अपने परिश्रम, अपनी ताकत को सदा-सदा के लिए कमजोर कर देतें हैं ! इसलिए.....पहले बीज बोइये और फिर फलों का आनन्द लीजिए !  बीज बोने और फल के मिलने के बीच का जो सफर है  वह हमें बहुत कुछ सीखता है, 

आप या तो जीतते हैं या फिर सीखते हैं….हारते नहीं !

आप या तो जीतते हैं या फिर सीखते हैं….हारते नहीं ! हार या असफलता कुछ और नहीं वह हमारे मन की एक दशा है, मन का एक विचार है एक नकारात्मक विचार इसके अलावा कुछ और नहीं, वह आपका मन है जो आपकी जीत और हार को परिभाषित करता है, आपने कुछ किया और आप नहीं जीत सके, आप अपने लक्ष्य को नहीं पा सके, आप अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच सके इसका मतलब यह नहीं है की आपका सब कुछ ख़त्म हो गया है ! इस शुरुआत और अंत के बीच का जो सफर आपने तय किया उस सफर ने आपको बहुत कुछ सिखाया होगा और उस सफर में आपने बहुत कुछ पाया भी होगा और वह जरुरी नहीं जीत हो लेकिन आगे आने वाली जीत का बीज तो जरूर डाल गया होगा, हर सफर का अंजाम जरुरी नहीं है की मंजिल ही हो लेकिन हर सफर एक मंजिल की नींव जरूर तैयार करता है जिसे देर सवेर आप पा ही लेते हैं ! मतलब "Either you Win or You Learn"  इसके अलावा इस जीवन में कुछ भी नहीं है और अगर आप सोचते हैं की है तो वह मिथ्या है, यथार्थ नहीं ! आपने शुरुआत की आपने अपने अंदर एक विचार को पैदा किया, उसके बीज को बोया और उसके पौधे को सींचा अब अगर आप यह शुरुआत न करने की बजा...